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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी २३३ केवल भाग्य के सहारे, प्रारब्ध के सहारे जीनेवाले, स्वयं अपने सद्भाग्य के द्वार बंद करते हैं। नये सद्भाग्य का निर्माण करने का प्राप्त सुअवसर खो देते हैं । - www.kobatirth.org ज्ञानी-उद्बुद्ध पुरुषों ने मनुष्य - जीवन के गीत रचे हैं। उन्होंने मनुष्यजीवन को पुरुषार्थ का क्षेत्र माना । इसी जीवन में पामर पुरुषोत्तम बने ! - इसी जीवन में क्षुद्र भी श्रेष्ठ बने! - इसी जीवन में संसारी मुक्त बने ! उन्होंने सही दिशा में प्रचंड पुरुषार्थ किया। अखंड पुरुषार्थ किया। • निश्चित दिशा में पुरुषार्थ करनेवालों को o विघ्नों को कुचलना होगा । ० संकटों में धीर रहना होगा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir O आफतों का दृढ़ता से मुकाबला करना होगा । • दुःखों को हँसते-हँसते सहना होगा । ● आशा, उत्साह और उमंग को जीवित रखना होगा । - कभी लेना पड़े दूसरों का सहारा तो लेना, परन्तु कुछ समय के लिये ही । किसी के सहारे जीने की आदत बुरी है । - दूसरों का सहारा खोजने के बजाय, दूसरों का सहारा बनने का सोचें। दूसरों का सहारा बनने में भी एक सावधानी रखनी चाहिए : सहारा लेनेवाला व्यक्ति पराश्रित न बन जाये, पुरुषार्थहीन न बन जाये । सहारा लेने में 'दीनता' से सावधान रहना पड़ता है। सहारा देने में 'अभिमान' से सावधान रहना पड़ता है ! आत्मबल, आत्मश्रद्धा, आत्मजागृति ही पुरुषार्थ में प्रेरणा बनती है। पुरुषार्थ करने पर भी निश्चित कालावधि में सफलता प्राप्त नहीं होती है, तब संभव है कि निराशा से मन भर जाये । उस समय हमें ऐसा प्रेरणास्रोत मिल जाये कि जो हमारी निराशा को मिटा कर मृत उत्साह को जीवित करे.... तो उसको ‘भाग्य' मानना । उस भाग्य का सहारा लेकर पुनः पुरुषार्थ के मार्ग पर चल देना। - For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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