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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी ज्ञान के अनुरूप क्रिया होनी चाहिए । आज धर्मक्षेत्र में यही विषमता फैल गई है। ज्ञान वाले क्रियाओं के प्रति उदासीन बने हैं, क्रिया करने वाले ज्ञान के प्रति लापरवाह बन गये हैं। दोनों पथभ्रष्ट बने हैं। - www.kobatirth.org एक क्रियाजड़ बना है, दूसरा ज्ञानमूढ़ बना है ! दोनों अपनी-अपनी तान में अभिमानी बने हुए हैं I - 'ज्ञान - क्रियाभ्यां मोक्षः' यह विधान दोनों भूले हुए हैं। ज्ञान के प्रकाश में देखता है कि 'यह हेय है, त्याज्य है...' परन्तु त्याग की क्रिया नहीं करता है । देखता है कि 'यह उपादेय है, ग्रहण करने योग्य है, ' परन्तु ग्रहण नहीं करता है ! ‘मैं जानता हूँ, मैं ज्ञानी हूँ...' यह अभिमान लिए फिरता है। - ज्ञान है कि 'ये सारे व्यसन मुझे बरबाद कर देंगे, फिर भी व्यसन छोड़ने का कार्य नहीं करता ! क्या फायदा उस ज्ञान से ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - जानता है कि पास वाले घर में दरिद्रता है, बीमारी है... फिर भी उसकी दरिद्रता को दूर करने का, सहायता करने का कार्य नहीं करता है, तो उस जानकारी का क्या अर्थ ? २२३ शास्त्रों का ज्ञान है, परन्तु किसी जिज्ञासु एवं पात्र मनुष्य को ज्ञान देता नहीं है... प्रमादी बन कर पड़ा रहता है, तो क्या महत्त्व है उस शास्त्र - ज्ञान का? - ऐश्वर्य की चंचलता जानते हुए भी यदि उसका त्याग नहीं करता है तो क्या फायदा उस जानकारी से? - बिना प्रेम का कार्य, कार्य नहीं होता, बेगार होता है, बोझ होता है। कोई छोटा-सा भी कार्य करें, प्रेम से करें । - किसी भिक्षुक को केवल एक रोटी दें, पानी का एक गिलास दें, प्रेम से दें, सस्मित दें। किसी को कार्य में सहयोग दें तो प्रेम से दें। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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