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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ यही है जिंदगी आपको नहलाते हैं... अनन्य प्रीति से। देवदुंदुभि से ब्रह्माण्ड को आंदोलित करते हैं अनन्य अनुराग से | गोशीर्ष चंदन से आपके शरीर पर विलेपन करते हैं, अनन्य उल्लास से | सुगंधी पुष्पों की मालाएँ आपके गले में आरोपित करते हैं, अनन्य उमंग से। कानों में कुंडल डालते हैं, हाथों में रत्नजड़ित कड़े डालते हैं, और मस्तक पर रत्नों से प्रकाशित मुकुट पहनाते हैं... अनन्य भक्तिभाव से। हे सुखकारी! स्वर्ग की किन्नरियाँ आपके सामने नृत्य करती हैं... तब वीणावादन होता है, मृदंग बजता है, बांसुरी के सुर प्रस्फुटित होते हैं। तालबद्ध नृत्य करती हुई देवांगनाएँ पुनः-पुनः आपके चरणों में वन्दना करती ___ हे परमनाथ! हर्षातिरेक से देवगण जयनाद करते हैं। जयनाद करते हुए वे आपको माता के पास लाकर सुला देते हैं। देवेन्द्र आपके अंगुष्ठ में श्रेष्ठ सुधारस भर देता है... आप उसी सुधा को चूसते रहते हैं। आप स्तनपान नहीं करते। हे वीतराग! आप भोजन/कवलाहार करते हैं, परन्तु छद्मस्थ जीव आपको आहार करते हुए नहीं देख पाते हैं। वैसे ही निहार-क्रिया भी छद्मस्थों के लिए अगोचर होती है। नहीं होता है आपके देह में प्रस्वेद, नहीं होती है कोई व्याधि और नहीं होता है मैल | श्वेत सुधा जैसा होता है, आपका खून और मांस । पारिजात की सौरभ जैसा होता है, आपका श्वासोच्छवास और शरीर पर होते हैं, एक हजार आठ सुलक्षण। हाथ में और चरणों में होते हैं छत्र, चामर, ध्वज, स्तंभ जैसे चिह्न । ऐसे हे अरिहंत! आपको मेरी भाववंदना हो। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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