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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ____१९७ ९०. प्यारभरी चाहना । हे परमात्मन्! - 'कभी-कभी मेरी भी भूल हो सकती है, ऐसा दिव्य बोध मुझे देने की कृपा करना। -- 'हर प्रसंग में और हर विषय में मुझे कुछ कहना ही चाहिए,' ऐसा मानने की मेरी दुष्ट आदत से मुझे बचा लेना। ___ - 'मैं सबकी सारी समस्याओं का समाधान करता रहूँ,' इस दुस्साहस से मुझे रोकना। ___'मैंने तुझसे शक्ति माँगी थी कि जिससे मैं सिद्धि प्राप्त कर सकूँ, परन्तु तूने मुझे निर्बलता दी... प्रभो, मुझे तेरा प्रदान स्वीकार है, मैं तेरी आज्ञा का पालन कर सकूँगा।' ___ - मैं तेरा उपकार मानता हूँ क्योंकि तूने समृद्धि नहीं दी, तूने मुझे दरिद्रता दी... मैं दरिद्रता में ज्यादा समझदार बनूँगा! __अच्छा किया तूने मुझे सत्ता नहीं दी, सत्ता में मैं लोगों की प्रशंसा पाता... परन्तु तूने मुझे निर्बलता दी... इससे मैंने तेरी प्रतिपल आवश्यकता महसूस की है। हे भगवन्! मैं इस दुनिया की ओर ही देखता रहा हूँ... यह देखना कब बंद होगा? तेरी ओर देखना कब प्रिय लगेगा? तू ही ऐसी कृपा कर कि तेरी ओर ही मेरा मन देखता रहे। ___ मैं तुझे कभी भी भूल न सकूँ, वैसा यदि कर दे और मेरे हृदय को इस संसार के जाल में फँसने न दे... तो फिर तेरी हर आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हूँ। हे नाथ! 'मुझे सुख देना,' ऐसी याचना मैं नहीं करता हूँ, परन्तु 'दुःख सहने की मुझे शक्ति देना, ऐसा तो मैं माँग सकता हूँ न? जितना इस संसार में भटकना होगा... भटकता रहूँगा... परन्तु बाद में मैं For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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