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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी १९२ गंदे होते हैं तो धो डालते हैं न? वैसे मन पर पड़े हुए बुरे प्रभावों को अविलंब धो डालो। तत्त्वचिन्तन से धो डालो ... परमात्म-भक्ति से धो डालो .... - गुरुसेवा से धो डालो... जब अपनी इच्छा के अनुकूल कुछ नहीं होता है, जब इच्छा के प्रतिकूल कुछ करना पड़ता है, जब अप्रिय... कटु शब्द सुनने पड़ते हैं... - - www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब खेद... ग्लानि... विषाद से मन भर जाता है । दुःख और वेदना से मन कराहता है। जीवन अर्थहीन लगता है। 'हम आनंद से कैसे जीयें? कोई इच्छा सफल ही नहीं होती है... न पैसा... न प्रेम... न प्रकाश...!' तत्त्वचिंतन की महत्ता यहीं स्थापित होती है । तत्त्वचिंतन, आत्मचिंतन... मनुष्य के लिए यहीं सहारा बन जाता है। - • सूर्य के प्रकाश में घी या तेल के दीपक महत्त्व नहीं रखते हैं । अन्धकार में, घोर अन्धकार में ही दीपक की महत्ता स्थापित होती है। सुखों के हजारों सूर्य जीवन- आकाश में झगमगाते हों... उस समय तत्त्वचिंतन का दीपक अर्थहीन लग सकता है, परन्तु सूर्यास्त होने पर.... घोर अन्धकार छा जाने पर, दीपक अर्थपूर्ण बनता है । - परन्तु घर में दीपक तैयार पड़ा हो तो ही जरुरत पड़ने पर जलाया जा सकता है न? दीपक तैयार ही न किया हो तो ? - जिस गाँव में 'बिजली' कभी भी चली जाती है, 'बिजली' पर भरोसा नहीं होता है... वहाँ लोग घर में तेल के दीपक या मोमबत्ती तैयार रखते हैं। बिजली चली जाने पर तुरन्त दीपक या मोमबत्ती जला लेते हैं। - • संसार के, भौतिक सुख भी वैसे ही हैं... भरोसे के लायक नहीं हैं। कभी भी वे सुख चले जा सकते हैं... उस समय हमारे पास तत्त्वचिन्तन के रत्नदीपक तैयार होने चाहिए, वे दीपक हमें रोशनी देते रहेंगे। हमारा आनंद अखण्ड रहेगा । - हमें तप-त्याग की आराधना भी आनंद से करनी चाहिए। हमें ज्ञानोपासना भी आनंद से करनी चाहिए। हमें व्रत - नियमों का पालन भी आनंद से करना For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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