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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २. आँसूभरी अभ्यर्थना संध्या का समय है। पश्चिम दिशा के वातायन में अकेला बैठा हूँ। इन दिनों क्या पता... अकेलापन अच्छा लग रहा है। क्षितिज की ओर देखता हूँ| लाल-पीला-काला ये सारे रंग क्षितिज को रंग रहे हैं। समय व्यतीत होता है... मनमोहक रंगलीला धीरे-धीरे समाप्त होने जा रही है। मन में एक विचार आ जाता है': 'ठीक इसी तरह जीवन के रंग भी अदृश्य हो जाएँगे? मृत्यु का अंधकार छा जाएगा? कब? नहीं जानता हूँ।' अनंत-अनंत जन्मों से नितांत पराभूत, असहाय, निरुपाय... अनाथ सा भटक रहा हूँ इस अंत, हीन संसार में! कितनी आकांक्षाएँ, कामनाएँ, कल्पनाएँ और संकल्प-विकल्प उभर रहे हैं, इस मन में! कहता हूँ कि 'मुझे मुक्ति चाहिए' चाहता हूँ बंधनों को! प्यारे लगते हैं राग-द्वेष के असंख्य बंधन! मुक्ति कब और कहाँ होगी, नहीं जानता हूँ। ___ मेरे अपराधों का अंत नहीं। जब मेरे असंख्य अपराधों की दुःखद स्मृति हो आती है, मुझे लगता है, मैं दीन और दयनीय हो गया हूँ | मैं अनंत काल से अनंत जीवों का अपराधी हूँ | अपने ही क्षुद्र स्वार्थों से मैंने कितनी जीवहिंसा की है? कितनी निर्दयता और निर्ममता से जीवों को कष्ट दिये हैं? न कोई ग्लानि... न कोई विरक्ति...। अपनी दिन-दिन गहरी होती इस आत्मव्यथा में मैं अपने आपको अरक्षित... अशरण पा रहा हूँ... कहाँ-कैसे रक्षा होगी... शरण मिलेगी - नहीं जानता हूँ। बार-बार आत्मा बेचैन हो उठती है...। चित्त का उद्वेग बढ़ता ही जाता है। क्या मैं स्वयं बेचैनी और उद्वेग में अपने आपको उलझाए नहीं रखता हूँ? दूर से एक मरीचिका पूर्ण आवेग से खींच रही है। आहा... मैं अपने आपसे ही छल कर रहा हूँ, अपने से ही आँख मिचौली खेल रहा है। जीवन नीरस, जड़ और चेतनाहीन बन गया है। नहीं है नवीन ताजगी, नया उत्साह और अभिनव चेतना । महायात्रा - मुक्तियात्रा का नक्शा बनते-बनते उलझ जाता है... यात्रापथ अवरुद्ध हो गया है। विफलताओं के शून्य काले धब्बों से आँखें मुरझा गई हैं। महायात्रा के पथ पर से अवरोध कब दूर होंगे - नहीं जानता हूँ| फिर एक नया आवेग नस-नस में लहरा जाता है। असंख्य काल से चली आई तीर्थंकरों की अलभ्य... महामूल्यवान ज्ञानसंपत्ति के रत्न-भंडार देखता For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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