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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ११४ ५७. अकेलापन अखरने न लगे इ आकाश मेघाच्छादित था। धीमी-धीमी बरसात बरस रही थी। मैं सोच रहा था। मेरे कमरे की एक खिड़की खुली थी। मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरी दृष्टि खिड़की की ओर थी। नीरव शांति थी। मैंने खिड़की के द्वार पर एक चिड़िया को बैठे हुए देखा । शान्त बैठी थी... अकेली थी। मुझे मालूम नहीं कि उसका कोई स्नेही होगा या नहीं! यह भी नहीं जानता कि उस चिड़िया के मन में कैसे विचार आते-जाते होंगे! यह तो जानता हूँ कि चिड़िया को मन होता है... और मन होता है इसलिए कुछ विचार तो आते-जाते रहते ही हैं! ___ मैं चिड़िया को देख रहा था और उसके विषय में सोच रहा था... परन्तु उसने मुझे देखा होगा या नहीं... मैं नहीं जानता! वह मेरे विषय में सोचती होगी या नहीं... यह भी नहीं जानता! परन्तु मेरे मन में प्रश्न पैदा हुआ : 'मैं इस चिड़िया के विषय में सोचता हूँ, करुणा से सोचता हूँ, परन्तु वह मेरे सामने भी नहीं देखती... वह मेरे विषय में सोचती होगी?' प्रश्न का समाधान मैंने स्वयं कर लिया : 'वह क्यों मेरे सामने देखे? वह कैसे मेरे विषय में सोचे? उसे मुझसे कोई अपेक्षा नहीं है... और मेरे विषय में सोचने की उसकी मानसिक क्षमता ही नहीं है।' ___ उसने अपने पंख हिलाये... अपने पैर आगे-पीछे किये... और पुनः स्थिर हो गयी... अपने में खो गयी! नींद नहीं आ रही थी... चिन्तन-यात्रा शुरू हो गई थी। मेरी आँखें बंद थी। भीतर से मंद-मंद परन्तु मधुर ध्वनि कर्णगोचर हो रही थी...। जैसे कोई बहते निर्झर की आवाज हो! लगा कि हृदयगिरि में कोई छोटा-सा झरना बह रहा है...| किनारे पर जा पहुँचा...! ओह... यह तो था एकत्व का पुनीत झरना! स्वच्छ निर्मल जलप्रवाह था...। देखने का मजा था... सुनने का मजा था...! आनंद ही आनंद! एकत्व का... निर्द्वन्द्व का आनंद था। जब आँखें खुली... वह चिड़िया वहीं बैठी थी... और बरसात भी मंद गति से बरस रही थी... मेरे कमरे में मैं अकेला ही था। एकत्व अच्छा लगा... एकत्व से प्यार हो गया। एकत्व के आनंद की क्षणिक अनुभूति, अनेकत्व के आनंद की क्षणिक अनुभूति से ज्यादा मिष्ट लगी... ज्यादा स्वच्छ लगी। अनेकता के अभाव में 'अकेलापन' तभी अखरता है, तभी बेचैन बनाता है, For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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