SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी १०१ है। आषाढ़ाभूति की घटना पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। घटना कैसे बनी, यह खोज का विषय है। ___ एक ओर, घोर... कठोर तपश्चर्या करनेवाले बड़े-बड़े मुनि-महात्माओं के कोई एकाध गलती करने पर साधनापथ से भ्रष्ट हो जाने के दृष्टांत पढ़ने में आते हैं, भवसागर में डूब जाने की बात सुनने में आती है। दूसरी ओर, ऐसे आषाढ़ाभूति जैसे पुरुषों के दृष्टान्त पढ़ने को मिलते हैं कि जो पतन की गहरी खाई में गिर गये थे और सामान्य निमित्त मिलने पर ऊपर उठे, सर्वज्ञवीतराग बन गये! ऐसी बातें पढ़कर मन द्विधा में उलझता है। बहुत सोचा, कई बार चिन्तन किया। तत्त्वज्ञान के माध्यम से इस प्रश्न को सुलझाने का प्रयत्न किया। एक दिन... पदयात्रा में चलते हुए समाधान मिल गया! निःसीम आनंद की अनुभूति हुई। आषाढ़ाभूति के उपादान की ओर दृष्टि गई... और बात स्पष्ट हो गई! उनका मुनिजीवन से जो पतन हुआ था, वह पतन वास्तव में पतन नहीं था। परन्तु उनको जो कर्म भोगने शेष थे, वे भोगसुख भोगे बिना क्षीण नहीं हो सकते थे और ऐसे भोगसुख मुनिजीवन में नहीं भोगे जा सकते थे। उन भोगसुखों को भोगने के लिए उन्हें संसार में जाना अनिवार्य था... इसलिये उन्हें संसार में जाना पड़ा | भोगसुख भोग लिये, कर्म नष्ट हो गये... और आत्मा अनासक्त बन गई! अनासक्त आत्मा रंगमंच पर आयी... 'भरत-केवलज्ञान' का अभिनय करते समय अवशिष्ट मोहनीयकर्म नष्ट हो गया! आत्मा वीतराग बन गया! जिस समय आषाढ़ाभूति अभिनेता बनकर रंगमंच पर आए थे, उस समय वे अनासक्त योगी बने हुए थे! अभिनय करने के पश्चात् वे मोक्षमार्ग की साधना करने हेतु पुनः त्याग, संयम के मार्ग पर चलने के लिए कृतनिश्चयी थे! उपादान आत्मा की वैषयिक सुखों में अनासक्ति, वीतराग बनने की गुरुचाभी (Master Key) है! अनासक्त आत्मा को सामान्य निमित्त भी वीतराग बना सकता है। विषयासक्त आत्मा को महान - असाधारण निमित्त भी वीतराग नहीं बना सकता है। 'अनासक्त योगी बनने की आंतरेच्छा कब फलवती बनेगी?' यह प्रश्न तो अभी तक प्रश्न ही बना हुआ है! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy