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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ४२. होनी तो होकर र सर्वज्ञ वीतराग भगवान महावीर के पास जब राजकुमार जमाली ने वैराग्यपूर्ण हृदय से और नम्रता भरे शब्दों से प्रार्थना की थी कि 'भगवन, मेरा मन वैषयिक सुखों से विरक्त बना है और मैं आपके चरणकमल में अपना जीवन समर्पित करना चाहता हूँ,' तब सर्वज्ञ परमात्मा महावीर देव ने जमाली को क्यों चारित्रधर्म प्रदान किया? मन में यह प्रश्न पैदा हुआ, प्रश्न का समाधान ढूंढते-ढूंढते कितने दिन बीत गये! परमात्मा सर्वज्ञ थे, जड़-चेतन सभी पदार्थों के सर्वकालीन भाव जानते थे! सभी द्रव्यों के सभी पर्यायों को जानते थे... उनसे कोई भी बात अज्ञात नहीं थी... तो क्या 'यह जमाली साधु बनने के पश्चात्, श्रुतज्ञानी बनने के पश्चात्, मेरे ही सिद्धान्तों का खंडन करेगा और मेरे विरुद्ध लोगों में प्रचार करेगा...' यह बात नहीं जानी होगी उन्होंने? जमाली का भविष्य क्या उनसे अज्ञात रहा होगा? नहीं, यह बात संभव नहीं। यदि संभवित मानें तो महावीर की सर्वज्ञता नहीं मान सकते! यदि सर्वज्ञता को स्वीकार करते हैं, तो जमाली के अनागत काल का ज्ञान स्वीकार करना ही होगा। __ भगवान महावीर जानते थे कि 'जमाली मेरे द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त का विरोध कर, श्रमण संघ का त्याग कर चला जायेगा और वह अपने सिद्धान्त का प्रचार करेगा' फिर भी भगवान ने जमाली को चारित्रधर्म दिया! अपने श्रमण संघ में सम्मिलित किया! प्रश्न यहाँ पैदा होता है कि ऐसा जानने पर भी उन्होंने जमाली को दीक्षा क्यों दी? यदि मुझे ज्ञात हो जाए कि 'यह व्यक्ति भविष्य में मेरा ही दुश्मन होने वाला है, तो मैं उस व्यक्ति को स्वीकार नहीं करूँगा। कोई भी नहीं करेगा। तो भगवान ने जानने पर भी उसे क्यों स्वीकार कर लिया? - इस प्रश्न का समाधान भगवान महावीर के बताये हुए एक सिद्धान्त से हो गया! वह सिद्धान्त है 'भवितव्यता' का! हर जीवात्मा की अपनी स्वतन्त्र 'भवितव्यता' होती है। हर जीवात्मा की गति, प्रगति, अवनति निश्चित होती है। हर जीवात्मा की उन्नति... अवनति निश्चित होती है। जो पूर्ण ज्ञानी महापुरुष होते हैं, उनके ज्ञान-प्रकाश में यह सब प्रतिबिंबित होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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