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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ‘गोमूत्रिका' कहते हैं। वह गोमूत्रिका पवन वगैरह से सूख जाती है, उसके बाद मिटती है, वैसे व्रतधारी श्रावक की माया जल्दी दूर नहीं होती है। यानी उसकी हृदय की कुटिलता दूर होने में कुछ समय लगता है। ३. अप्रत्याख्यानावरण माया बकरे के सींग जैसी होती है। जिस प्रकार बकरे का सींग वक्र होता है, उस को सीधा करना कितना मुश्किल होता है? वैसे व्रतरहित समकितदृष्टि मनुष्य की हृदयगत कुटिलता दूर होना मुश्किल होता है । होती है दूर, परंतु समय लगता है। ४. अनन्तानुबंधी माया, बांस के मूल जैसी होती है। बांस का धनीभूत मूल देखा है? इतना वह सख्त होता है कि आग से भी वह जलता नहीं है! उसकी वक्रता दूर नहीं होती है, वैसे मिथ्यादृष्टि जीवों के मन की कुटिलता, लाख उपाय करने पर भी दूर नहीं होती है। चेतन, चारों प्रकार की माया को, स्थूल भौतिक उपमाएँ देकर अच्छी तरह समझाई गई है। भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों को भिन्न-भिन्न प्रकार की माया होती है। अब चार प्रकार के लोभ की उपमाएँ लिखता हूँ। १. संज्वलन लोभ हल्दी के रंग जैसा होता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे हल्दी का रंग, सूर्य के ताप से शीघ्र ही दूर हो जाता है, वैसे ही साधुसाध्वी का लोभ क्षणमात्र में दूर हो जाता है, ज्ञानसूर्य के ताप से! २. प्रत्याख्यानावरण लोभ, दीपक के काजल जैसा है। जिस प्रकार वस्त्र को काज़ल का दाग लग जाता है, वह दाग प्रयत्न से दूर होता है, वैसे व्रतधारी श्रावक का लोभ, कुछ विशेष प्रयत्न से दूर होता है। ३. अप्रत्याख्यानावरण लोभ, चिकने कीचड़ जैसा है । जिस तरह वस्त्र पर लगा हुआ चिकना कीचड़, बहुत ही ज्यादा प्रयत्न से दूर होता है वैसे व्रत रहित समकितदृष्टि जीव का लोभ (विशेष कर देवों का ) बहुत ही प्रयत्न से दूर होता है । ४. अनन्तानुबंधी लोभ, पक्के रंग जैसा होता है । वस्त्र पर लगा हुआ पक्का रंग, धोने पर भी नहीं जाता है... वस्त्र फट जाता है, पर रंग नहीं जाता है, वैसा लोभ मिथ्यादृष्टि जीवों का होता है। मरने पर भी ९१ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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