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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अब एक महत्वपूर्ण और अंतिम उपाय बताता हूँ। शीलधर्म का पालन! स्वपत्नी में संतोष रखनेवाला, परस्त्री का त्यागी सदाचारी पुरुष और स्वपति में ही संतुष्ट, पर-पुरुष की त्यागी स्त्री, ये दोनों शातावेदनीय कर्म बाँधते हैं। जितना ज्यादा ब्रह्मचर्य का पालन करता है मनुष्य, उतना ही प्रगाढ़ शातावेदनीय कर्म बाँधता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर जीवात्मा अपने जीवन में सुख-शांति चाहता है । मन की शांति और शरीर का स्वास्थ्य कौन नहीं चाहता ? वह पाने के ये सारे उपाय ज्ञानी पुरुषों ने बताए हैं । इस जीवन में तो पूर्व जन्मों में उपार्जित शातावेदनीय और अशातावेदनीय कर्मों को भोगने के हैं, परंतु भविष्य अपने हाथ में है ! भविष्य को सुखमय और शांतिमय चाहते हैं, तो ये सारे उपाय - हमारी आराधना बन जानी चाहिए । शातावेदनीय के उदय में स्वस्थता और अशातावेदनीय के उदय में समताभाव बनाए रखना। तू स्वस्थ रहे, यही शुभ कामना, ७३ For Private And Personal Use Only भद्रगुप्तसूरि
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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