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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्रत पालन करते करते बीच-बीच में दोष लगाते हैं, अतिचार लगाते हैं... अथवा किसी व्रत का भंग करते हैं। साधुजीवन में यदि हम लोग हमारी दस प्रकार की 'सामाचारी' का सम्यग पालन करते हैं, यानी हमारा आपस का व्यवहार सुचारु रूप से निभाते हैं, किसी के मन को दुःखाते नहीं हैं, किसी को शारीरिक पीड़ा नहीं पहुंचाते हैं, तो शातावेदनीय कर्म बाँधते हैं। जब-जब हमारा व्यवहार बिगड़ता है तब अशातावेदनीय बँध जाता है! इसलिए साधुपुरुषों को अपने व्यवहारों को सदैव शुद्ध रखने चाहिए। - जो जीवात्मा क्रोधविजय, मानविजय, मायाविजय और लोभविजय करने का प्रयत्न करता रहता है, वह शातावेदनीय कर्म बाँधता है। वह प्रयत्नपुरुषार्थ मानसिक होता है। सम्यग् ज्ञान के सहारे, सद्गुरुओं के सहारे यह पुरुषार्थ किया जा सकता है। - वैसे, दानरुचि से भी शातावेदनीय कर्म बंधता है। यदि तेरे मन में दान देने की भावना बनी रहती है, अवसर-अवसर पर दान देता रहता है... तो शातावेदनीय बाँधता रहता है! - संकट और आपत्ति के समय भी जो मनुष्य धर्म का त्याग नहीं करता है, वह उत्कृष्ट शातावेदनीय कर्म बाँधता है। यदि तू रात्रिभोजन-त्यागी है, कभी सूर्यास्त के पूर्व घर नहीं पहुंच पाया, भूख जोरों की लगी है... फिर भी तू रात्रिभोजन नहीं करता है, 'मेरी प्रतिज्ञा है रात्रिभोजन नहीं करने की, मैं रात्रि में नहीं खाऊँगा!' तो तू शातावेदनीय बाँध लेता है। चेतन, एक परिचित परिवार की लड़की है। शादी के पूर्व उसने दो प्रतिज्ञा ले ली थी - प्रतिदिन परमात्मा की पूजा करने की और प्रतिदिन एक सामायिक करने की। प्रतिज्ञा का दृढ़ता से वह पालन करती थी। उसकी शादी हुई, ससुराल गई। वहाँ उसकी सास और पति ने कह दिया- 'तू मंदिर नहीं जा सकती है और सामायिक भी नहीं कर सकती है।' ___ लड़की ने अपनी प्रतिज्ञा की बात कही, परंतु सास और पति नहीं माने। लड़की जाती रही मंदिर, करती रही पूजा और सामायिक। सास तंग करती रही, पति मारता रहा! लड़की सहन करती रही । 'कुछ भी हो जाए, मैं मेरी प्रतिज्ञा का पालन करूँगी।' वह मौन रह कर संकट सहन करती है। सास और पति की अवसरोचित सेवा करती है, घर का ७१ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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