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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। वैसे ग़लत कार्य नहीं करेगा, कि जिससे अशातावेदनीय कर्म बँधता है और वह कर्म उदय में आकर जीव को रोगी... वेदनाग्रस्त बना देता है। - चेतन, जब मैं किसी अंध व्यक्ति को देखता हूँ तो सोचता हूँ: इस मनुष्य ने पूर्व जन्म में किसी की आँखें फोड़ दी होगी? किसी को बोला होगा, आक्रोश किया होगा देखता नहीं क्या? अंधा है? मेरा पैर कुचल दिया?' अथवा मन में सोचा होगा कि-मेरा पति अंधा हो जाय... तो अच्छा, मैं उस पुरुष के साथ निर्भय होकर कामक्रीडा कर सकूँ।' अथवा किसी की आँखों पर ही प्रहार कर दिया होगा। - दुःख और आपत्ति में जो मनुष्य धर्म छोड़ देता है, वह भी अशातावेदनीय कर्म बाँधता है। वह कर्म उदय में आता है... सुख और संपत्ति के समय में! सुंदर पत्नी हो, सुविधा युक्त बंगला हो, विपुल धन-संपत्ति हो, उस समय शरीर में रोग उत्पन्न हो जाए! पेट में अल्सर हो जाय, डायाबिटीज हो जाय, कैंसर हो जाय, टी.बी. हो जाय! कोई भी रोग उत्पन्न हो जाय । - अशक्त, अपंग और बीमारों की सेवा करने की शक्ति हो, समय हो, फिर भी जो सेवा नहीं करता है, वह अशातावेदनीय कर्म बाँधता है । वृद्ध पुरुषों की सेवा नहीं करता है... यह कर्म बाँधता है। इसलिए तो तीर्थंकर भगवंतों ने बाल-वृद्ध-बीमार वगैरह की सेवा-वैयावच्च करने का उपदेश दिया और इस गुण को महान गुण बताया। चेतन, हॉस्पिटल में जाकर, एक-एक रोगी का अवलोकन करना और 'इस व्यक्ति ने पूर्व जन्मों में कौन सा पाप कर्म किया होगा...?' अनुसंधान करना । बाद में, यदि उस दर्दी से बात करने का अवसर मिले तो करुणा से, मृदु शब्दों में यह तत्त्वज्ञान उसको देना। समझाना दुःख-दर्द के कारणों को। यह भी कहना किः 'घबराओ मत, अशातावेदनीय कर्म का उदयकाल समाप्त होगा और शातावेदनीय कर्म का उदय काल शुरू होगा... तब तुम निरोगी बन जाओगे। तुम्हारी सारी वेदनाएं दूर हो जाएंगी।' ___ शाता के बाद अशाता और अशाता के बाद शाता... यह परिवर्तन जीवन में चलता ही रहता है। चूंकि शातावेदनीय कर्म प्रकृति और अशातावेदनीय कर्म प्रकृति-दोनों परिवर्तनशील कर्म प्रकृति हैं। ६७ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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