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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्यक्ष बताता हूँ। - देख, यह लड़का अपनी जननी को कटु शब्द बोल रहा है, गंदे शब्द बोल रहा है, छुरी मारने जा रहा है... देखा न? यह लड़का अशातावेदनीय बाँध रहा है। - देख, यह दूसरा बड़ा लड़का अपने पिता से झगड़ रहा है, गंदे शब्द बोल रहा है, छुरी मारने जा रहा है... देखा न? यह लड़का अशातावेदनीय बाँध रहा है। - यह पुरुष...धर्मगुरु का अनादर कर रहा है... देखा न? धर्मगुरु की अवज्ञा कर रहा है... तिरस्कार कर रहा है...। वह पुरुष अशातावेदनीय कर्म बाँध रहा है। - उस महिला को देखा। कितना क्रोध कर रही है? जोर-जोर से चिल्ला रही है...मुँह से अंगार जैसे शब्द निकाल रही है... वह अशातावेदनीय कर्म बाँध रही है। - चेतन, उधर... उस गली में देख, दो पुरुष मिलकर उस व्यक्ति को निर्दयता से मार रहे हैं...। देखा न? वे दोनों अशातावेदनीय कर्म बाँध रहे हैं। - उधर... उस घर में भी देख ले - वो महिला अपने बच्चे को निर्दयता से मार रही है... बच्चा रो रहा है, तड़पता है... फिर भी महिला रुकती नहीं है... मारती जाती है बच्चे को । महिला अशातावेदनीय कर्म बाँध रही है। - चेतन, हम 'स्लोटर हाउस' नहीं जाएँगे.. वहाँ पशुओं को मारे जाते हैं न? मारने वाले वे कसाई लोग अशातावेदनीय बाँधते हैं। - घर में खटमल, मच्छर-वगैरह छोटे जीवों को मारनेवाले लोगों को क्या तूने नहीं देखे हैं? वे मारनेवाले लोग, अशातावेदनीय बाँधते हैं। - जो दूसरों को, क्षमायाचना करनेवालों को क्षमा नहीं देते हैं, वैरभावना बनाए रखते हैं... वे अशातावेदनीय बाँधते हैं। - जो व्रत नहीं लेते हैं, नियम ग्रहण नहीं करते हैं, वे भी कर्म बाँधते हैं। व्रत नियम की बात पर हँसते हैं, व्रत-नियमों का उपहास करते हैं वे भी अशातावेदनीय कर्म बाँधते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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