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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसको कोई काम करना अच्छा नहीं लगता। खाता-पीता है और सोता है। आलसी बन गया है। न दुकान पर बैठता है, न सर्विस करता है...। क्या करना चाहिए इस के लिए?' बात करते समय पिता बार-बार लड़के के सामने देखता था, लड़का जमीन पर दृष्टि गड़ाए बैठा था। माता ने कहा : 'महाराज साब, न कभी यह सबके साथ हँसता है, न हमारे साथ प्रेम से बोलता है...। कोई काम करता है तो बिना उत्साह के, बिना उमंग के! क्या हो गया है मेरे बेटे को?' माता की आँखें डबडबा गई। लड़का वैसे ही बैठा था। - पिता के मन में पुत्र के प्रति द्वेष था। - माता को पुत्र के प्रति करुणा थी। - लड़के के मन में माता-पिता के प्रति उदासीनता थी। माता-पिता की समस्या का समाधान मेरे पास था, परंतु वह समाधान पुत्र के लिए उपर्युक्त नहीं था। इसलिए लड़के को मंदिर में दर्शन करने भेज कर, मैंने माता-पिता को कहा : 'आप का लड़का वीर्यांतराय कर्म के प्रभाव में है। दूसरा कोई कारण नहीं है। वीर्यांतराय कर्म का प्रभाव पूर्णतया तो दूर होगा नहीं, होता भी नहीं है, परंतु प्रभाव कम करने के उपाय बताऊँगा। लड़के को ही बताऊँगा। वह पुरुषार्थ करेगा तो अवश्य सफलता पाएगा। आप दोनों उसके प्रति प्रेम और करुणा से व्यवहार करना। उसका तिरस्कार नहीं करना ।' लड़का मंदिर से आया। माता-पिता चले गए। लड़के को मैंने एक घंटा समझाया। 'वीर्यांतराय कर्म' का प्रभाव कम करने के उपाय बताये। उसको मेरी बातें पसंद आयी। उसने लगन से उपाय किए.. कुछ वर्ष तक। आज वह प्रसन्नचित्त है। चेतन, एक दूसरा उदाहरण बताता हूँ : वह पुरुष होगा ३०/३२ साल की उम्र का । उसका शरीर कमजोर लगता था। कुछ निराश भी लगता था। उसने मेरे एक परिचित श्रावक की पहचान देकर बात शुरू की : 'महाराज साब, क़रीबन १० साल से मेरा शरीर कमजोर है। डॉक्टरों को बताया। शरीर की जाँच करवाई। शरीर में कोई रोग नहीं है। परंतु मैं थोड़ा भी काम करता हूँ, थक जाता हूँ। थोड़ा भी चलता हूँ, थक जाता हूँ। ज्यादा बोल दिया, थक जाता हूँ। बार-बार आराम करने की इच्छा होती है। जीवन का आनंद चला गया है। ऐसा क्यों होता है, मेरी समझ ६० For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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