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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) महावीरालय : हृदय में अलौकिक धर्मोल्लास जगाने वाला चरम तीर्थकर श्री महावीरस्वामी का शिल्पकला युक्त भव्य प्रासाद 'महाबीरालय' दर्शनीय है. प्रथम तल पर गर्भगृह में मूलनायक महावीरस्वामी आदि १३ प्रतिमाओं के दर्शन अलग-अलग देरियों में होते हैं तथा भूमि तल पर आदीश्वर भगवान की भव्य प्रतिमा, माणिभद्रवीर तथा भगवती पद्मावती सहित पांच प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं. सभी प्रतिमाएँ इतनी मोहक एवं चुम्बकीय आकर्षण रखती हैं कि लगता है सामने ही बैठे रहें. - मंदिर को परंपरागत शैली में शिल्पांकनों द्वारा रोचक पद्धति से अलंकृत किया गया है, जिससे सीढियों से लेकर शिखर के गुंबज तक तथा रंगमंडप से गर्भगृह का चप्पा-चप्पा जैन शिल्प कला को आधुनिक युग में पुनः जागृत करता दृष्टिगोचर होता है. द्वारों पर उत्कीर्ण भगवान महावीर देव के प्रसंग २४ यक्ष, २४ यक्षिणियों, १६ महाविद्याओं, विविध स्वरूपों में अप्सरा, देव, किन्नर, पशु-पक्षी सहित वेल-वल्लरी आदि इस मंदिर को जैन शिल्प एवं स्थापत्य के क्षेत्र में एक अप्रतिम उदाहरण के रूप में सफलतापूर्वक प्रस्तुत करते हैं. महावीरालय की विशिष्टता यह है कि आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के अन्तिम संस्कार के समय प्रतिवर्ष २२ मई को दुपहर २ बजकर ७ मिनट पर महावीरालय के शिखर में से होकर सूर्य किरणें श्री महावीरस्वामी के ललाट को सूर्यतिलक से देदीप्यमान करे ऐसी अनुपम एवं अद्वितीय व्यवस्था की गई है. प्रति वर्ष इस आह्लादक घटना का दर्शन बड़ी संख्या में जनमेदनी भावविभोर होकर करती है. (२) आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति मंदिर (गुरु मंदिर) : पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव प्रशान्तमूर्ति श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म. के पुण्य देह के अन्तिम संस्कार स्थल पर पूज्य श्री की पुण्य-स्मृति में संगमरमर का कलात्मक गुरु मंदिर निर्मित किया गया है. स्फटिक रत्न से निर्मित अनन्तलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामीजी की मनोहर मूर्ति तथा स्फटिक से ही निर्मित गुरु चरण-पादुका वास्तव में दर्शनीय हैं. इस गुरु) मंदिर में दीवारों पर संगमरमर की आठ जालियों में दोनों ओर श्रीगुरुचरणपादुका तथा गुरु श्री गौतमस्वामी के जीवन की विविध For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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