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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विघ्न पैदा करता रहेगा। अब, इसी पत्र में 'नाम-कर्म' के बंध हेतु बता देता हूँ। इस के साथ आठों कर्मों के बंध हेतु लिखने का काम पूर्ण होगा। चेतन, नाम-कर्म दो प्रकार का हैं : शुभ नाम कर्म और अशुभ नाम कर्म। 'सरलो अ-गारविल्लो सह-नामं, अन्नहा असुहं ।' - जो मनुष्य सरल होता है, - जो मनुष्य रस-गारव से रहित होता है, -- जो मनुष्य ऋद्धि-गारव से रहित होता है, - जो मनुष्य शाता-गारव से रहित होता है, वह शुभ-नाम कर्म बाँधता है। नाम-कर्म की जिस प्रकृति का परिणाम जीव के लिए सुखदायी होता है, वह शुभ-नामकर्म कहलाता है, जैसे तीर्थंकर नाम कर्म, देवगति, मनुष्य गति, पहला संघयण, सुस्वर, सुभग, यशकीर्ति वगैरह। १. पहली बात हैं सरलता की। जो माया-कपट रहित होता है, वह शुभ नाम कर्म बाँधता हैं। २. दूसरी बात है रसगारव की। रसास्वाद की प्रबल वृत्ति, 'रसगारव' कहलाता है। जिसमें रसास्वाद की तीव्र वृत्ति नहीं होती है, वह शुभ नाम कर्म बाँधता है। ३. तीसरी बात है ऋद्धिगारव की। जिसको ठाट-बाट पसंद होता है, शान से रहने का मोह होता है, उसको ऋद्धिगारव कहते हैं। जो इस गारव से रहित होता है, वह शुभ नाम कर्म बाँधता है। ४. चौथी बात है शाता-गारव की । शाता-गारव यानी सुखशीलता। आरामप्रियता। जो मनुष्य शातागारव-रहित होता है, वह शुभ-नाम कर्म बाँधता है। चेतन, जो सरल नहीं होता है, जो तीनों गारव से ग्रसित होता है, वह अशुभनाम कर्म बाँधता है। सावधान रहना! गारवों में रक्त नहीं बनना। - भद्रगुप्तसूरि २७१ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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