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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - जो मनुष्य परिग्रह में तीव्र आसक्ति रखता है, यानी स्थावर, जंगम संपत्ति के ऊपर ममत्व बाँधता है, वह मनुष्य नरक गति का आयुष्य बाँध लेता है। मनुष्य के पास अपार संपत्ति हो और उस पर ममत्व करें, वो तो है ही, परंतु जिसके पास संपत्ति नहीं है, परंतु संपत्ति की कल्पना कर, जो आसक्ति करता है, वह भी नरकगति का आयुष्यकर्म बाँध लेता है। वैसे तो मूर्छा, ममत्व, आसक्ति ही परिग्रह है। मनुष्य के पास संपत्ति-वैभव हो या मत हो, आसक्ति है तो वह परिग्रही है। - नरकगति का आयुष्यकर्म बाँधने का तीसरा कारण है तीव्र कषाय । विशेष कर क्रोध कषाय। तीव्र कषायवाला मनुष्य दूसरों की हत्या करने के विचार करते हैं, हत्या कर भी देते हैं। जीवघातक मनुष्य मरकर नरक में ही प्रायः जाता है। तीव्र कषाय की अवस्था में यदि मनुष्य आयुष्य कर्म बाँधता है तो नरकगति का ही बाँधता है। तीव्र कषाय में 'रौद्रध्यान' होता है, रौद्रध्यान नरक में ले जाता है। अब तिर्यंचगति का आयुष्य कर्म जीव क्या-क्या करने से बाँधता है, वह बताता हूँ। - जो मनुष्य गूढ़ हृदयवाला होता है, - जो मनुष्य शठ होता है, यानी ठग होता है, - जो मनुष्य मूर्ख स्वभाव का होता है, - जिसके हृदय में तीन शल्य होते हैं, ऐसे जीव तिर्यंच गति का (पशु-पक्षी इत्यादि की गति) आयुष्य कर्म बाँधते हैं। गूढ़ हृदय का अर्थ होता है अति कपट से भरा हुआ हृदय | जो बोलता कुछ है, सोचता कुछ है और करता कुछ और ही है। ऐसे लोग मूर्ख स्वभाव के होते हैं, यानी मायाकपट करने के करुण परिणाम का विचार नहीं कर सकते। उनमें विवेक नहीं होता है। वे अपने हृदय में मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यात्वशल्य को भर के जीते हैं। बाहर से दिखावा सरलता का, साधुता का और समकित-दृष्टि का करते हैं। यही तो माया है। ऐसे मायावी लोग तिर्यंचगति का आयुष्य कर्म बाँधकर, पशु-पक्षी की योनि में चले जाते हैं। चेतन, अब मनुष्यगति का आयुष्य कर्म क्या-क्या करने से बँधता, है, यह बताता हूँ। २६१ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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