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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ‘विहायोगति-नाम कर्म!' चाल (गति) दूसरों को प्रिय लगे वैसी होती है और अप्रिय लगे वैसी भी होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऊँट चलता है, उसकी चाल अच्छी नहीं लगती, बैल चलता है, उसकी चाल अच्छी लगती है, - हंस चलता है, अच्छा लगता है, कौए की चाल अच्छी नहीं लगती । - बंदर चलता है, उसकी चाल अच्छी नहीं लगती, परंतु कुत्ता चलता है, चाल अच्छी लगती है । - कोई मनुष्य चलता है, उसकी चाल अच्छी लगती है, चाल अच्छी नहीं लगती है। इस दृष्टि से विहायोगति-नाम कर्म के दो प्रकार बताए गए हैं - शुभ विहायोगति, किसी मनुष्य अशुभ विहायोगति, - शुभ विहायोगति कर्म के उदय से जीव की चाल अच्छी होती है, अशुभ विहायोगति कर्म के उदय से जीव की चाल अच्छी नहीं होती । चलनेवाले जीव चलते तो हैं, परंतु किसी का चलना दुनिया के लोगों को अच्छा लगता है, किसी का चलना अच्छा नहीं लगता इसका कारण विहायोगति- - नाम कर्म है। की चेतन, तेरा दूसरा प्रश्न है शरीर के वजन के विषय में। किसी मनुष्य का वजन ज्यादा होता है, किसी का वजन जितना होना चाहिए उससे कम होता है... किसी का जितना वजन होना चाहिए, उतना होता है। इसमें निर्णायक होता है - 'अगुरुलघु' नाम कर्म ।' जिस जीव का यह कर्म उदय में होता है उसका शरीर प्रमाण युक्त वजनवाला होता है। हर जीव का अपना-अपना यह कर्म होता है। For Private And Personal Use Only चेतन, तेरा तीसरा प्रश्न है: कई मनुष्य और पशु अपने ही शरीर के अवयवों से कष्ट पाते हैं, ऐसा क्यों होता है ? चेतन, इसका कारण है ‘उपघात' नाम कर्म । - किसी मनुष्य की पड़जीभ' होती है, यानी जीभ छोटी होती है, तो बार-बार दाँतों के बीच आ जाती है, कुचलती है, दुःख होता है । - किसी के पाँव पर 'रसोली' होती है, यानी बड़ी गांठ होती है, चलने में वह १९५
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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