SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन, ये पाँच दृष्टान्त मैं लिखता हूँ । इन दृष्टांतों के माध्यम से 'थीणद्धि' निद्रा का स्वरूप तू समझ पाएगा। १. एक गाँव में एक पटेल - किसान रहता था । उसको मांस खाना बहुत प्रिय था। कच्चा मांस भी खा जाता था। एक दिन उस गाँव में गुणवान और ज्ञानी साधु पुरुष गए। वह किसान साधु पुरुषों के परिचय में आया। साधुओं ने उसको उपदेश दिया। मांसाहार के अनिष्ट समझाए। संसारवास के दुःख समझाए । किसान संसार के प्रति विरक्त बना। साधुओं ने उसको भागवती दीक्षा दी, किसान साधु बन गया । साधुओं के साथ वह विहार करता हुआ गाम-गाम, नगर-नगर जाता है। एक गाँव के बाहर कुछ मांसाहारी लोग भैंसे को मार रहे थे, चीर रहे थे। उस किसान-मुनि ने वह दृश्य देखा। उसके पूर्व संस्कार जागृत हुए। मांस खाने की तीव्र इच्छा हुई। वह इच्छा रात की अंतिम क्रिया संथारा - पौरूषी करने तक शांत नहीं हुई। सोते समय भी वही मांसाहार की इच्छा बनी रही। रात्रि में ‘थीणद्धि' निद्रा का उदय हुआ । वह किसान साधु निद्रा में ही खड़ा हुआ। गाँव के बाहर जहाँ भैंसों का समूह था वहाँ गया। एक भैंसें को मारकर उसका मांस खाने लगा। पेट भर गया । जो मांस बचा था, वह लेकर उपाश्रय में आया। मांस उपाश्रय में डालकर वह सो गया। सुबह गुरु को कहा: 'मुझे आज रात्रि में ऐसाऐसा मांसाहार का स्वप्न आया ।' परंतु साधुओं ने उपाश्रय के एक भाग में पड़ा मांस देखा । एवं साधु के वस्त्र पर, मुँह पर खून के दाग देखे। सभी साधुओं ने निर्णय किया कि इस किसान साधु को 'थीणद्धि' निद्रा का उदय है, इसलिए यह चारित्र-धर्म के योग्य नहीं है। मुनिवेश लेकर उसको गृहवास में भेज दिया । २. दूसरा दृष्टांत दिया गया है मोदक खानेवाले साधु का । एक साधु गोचरी लेने गाँव में गया। एक घर में साधु ने एक थाल में जमाए हुए स्निग्ध, सुवासि एवं मनोरम मोदक देखे । साधु वहाँ खड़ा रहा। दीर्घकाल तक मोदकों को लुब्ध भाव से देखता रहा। परंतु किसी ने उसको मोदक नहीं दिया । वह साधु निराश होकर उपाश्रय गया। मोदक की तीव्र इच्छा लेकर साधु रात्रि में सो गया । रात्रि में ‘थीणद्धि' निद्रा का उदय हुआ । वह खड़ा हुआ। उस मोदकवाले घर के पास गया। घर का द्वार तोड़कर घर में गया । मोदक पेटभर खाए । जो बचे वे पात्र में भरकर उपाश्रय आए । पात्र एक जगह रख दिया और वे सो गए। सुबह १९१ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy