SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बनता है, उसके साथ नए आहारक पुद्गलों का संबंध यह कर्म करवाता है । ४. औदारिक तैजस बंधन - औदारिक शरीर के पुद्गलों के साथ तैजस वर्गणा के पुद्गलों (तैजस शरीर के) का संबंध यह कर्म करवाता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. वैक्रिय-तैजस बंधन - वैक्रिय शरीर के पुद्गलों के साथ तैजस शरीर के तैजस वर्गणा के पुद्गलों का संबंध करानेवाला यह नामकर्म है। ६. आहारक तैजस बंधन - आहारक शरीर के पुद्गलों के साथ भी तैजस शरीर का होना आवश्यक तो है ही । दोनों शरीर के पुद्गलों का सम्मिश्रण यह नामकर्म करवाता है । ७. औदारिक-कार्मण बंधन - हर जीवात्मा के साथ कार्मण शरीर तो होता ही है। जब जीव औदारिक शरीर बनाता है, तब औदारिक पुद्गल आते हैं। कार्मण पुद्गलों के साथ औदारिक पुद्गलों का संबंध (संमिश्र) होना आवश्यक होता है। यह संबंध यह कर्म करवाता है। ८. वैक्रिय-कार्मण बंधन - कार्मण शरीर के पुद्गलों के साथ वैक्रिय शरीर के पुद्गलों का संबंध करानेवाला यह कर्म है। ९. आहारक-कार्मण बंधन - कार्मण शरीर के पुद्गलों के साथ आहारक शरीर के पुद्गलों का संबंध करानेवाला यह कर्म है। १०. . औदारिक- तैजस-कार्मण बंधन - जीव के साथ तैजस शरीर और कार्मण शरीर तो होते ही है। मृत्यु के बाद दूसरी गति में जाते समय भी ये दो शरीर जीव के साथ रहते हैं। जब जीव दूसरी गति में जाते ही औदारिक शरीर बनाता है तो औदारिक पुद्गलों का तैजस कार्मण वर्गणा के पुद्गलों के साथ संबंध होता है। वह संबंध करानेवाला यह कर्म होता है। ११. वैक्रिय-तैजस-कार्मण बंधन - तैजस कार्मण वर्गणा के पुद्गलों के साथ वैक्रिय पुद्गलों का सम्मिश्रण करानेवाला यह बंधन नामकर्म होता है। १२. आहारक-तैजस कार्मण बंधन - तैजस कार्मण वर्गणा के पुद्गलों के साथ आहारक शरीर के आहारक पुद्गलों का संबंध यह कर्म करवाता है। १३. तैजस-तैजस बंधन - पहले के तैजस शरीर के पुद्गलों के साथ जो नए तैजस-वर्गणा के पुद्गल आते हैं, वे जुड़ जाते हैं, एकाकार हो जाते हैं, यह काम यह कर्म करता है । १७९ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy