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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मुँह पीला होता है, खून का रंग लाल होता है ! वैसे तोते का रंग हरा माना गया है, फिर भी उसके शरीर में कोई अवयव लाल होता है । कोई अवयव काला होता है। परंतु मुख्य रंग से व्यवहार होता है। तोता हरा कहा जाता है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार पशु-पक्षी के रंग भी 'वर्ण-नाम कर्म' के आधार पर होते हैं । चेतन, संपूर्ण जीवसृष्टि के वर्ण-गंध-रस और स्पर्श का मूल कारण यह नामकर्म है। ये वर्णादि पुद्गलात्मक होते हैं, उनको लेकर राग-द्वेष करनेवाले जीवों को उपदेश देते हुए एक साधु पुरुष ने कहा है कोई गोरा, कोई काला-पीला नयने निरखन की, वो देखी मत राचो प्राणी ! रचना पुद्गल की । अच्छे रंग-रूप देख कर राग नहीं करना है, मात्र देखना है। बिना राग किए देखना है, बिना द्वेष किए देखना है । चेतन, राग-द्वेष के बिना देखने की कला आ जाएँ तो जीवन सफल हो जाएँ । दुनिया के कुछ रूप-रंग मात्र देखने के होते हैं । न राग करना है, ना द्वेष करना है। रानी अभया ने श्रेष्ठि सुदर्शन का रूप देखा परंतु राग से देखा, परिणाम कैसा खतरनाक आया? परंतु सुदर्शन अभया का सुंदर रूप देख कर मुग्ध नहीं हुए, रागी नहीं बने, तो उनके ऊपर दैवी कृपा उतर आई ! जैसे पुद्गल का रूप देखकर रागी -द्वेषी नहीं होना है, वैसे पुद्गल का स्पर्श अनुभवकर रागी-द्वेषी नहीं बनना है। हो सके वहाँ तक परपुद्गल को स्पर्श ही नहीं करना। यदि स्पर्श प्रिय लग गया तो वह पाने की इच्छा होगी। दूसरों की पत्नी और दूसरों के रुपये पाने की इच्छा हुई कि विनाश का प्रारंभ हुआ । यदि जीवन का सर्वविनाश नहीं करना है तो पर- पुद्गल के रूपरसादि में राग-द्वेष करना छोड़ो। - चेतन, शरीर निर्माण की प्रक्रिया में 'शरीर नामकर्म' कैसे काम करता है, वह बताया, .' अंगोपांग नामकर्म' कैसे काम करता है, वह बताया, - 'निर्माण-नाम कर्म' के विषय में बताया, . 'संस्थान नाम कर्म' का कार्य बताया, और 'वर्ण नाम-कर्म को भी विस्तार से समझाया । १७२ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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