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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मानना। यदि मनुष्य नीच कहलाता है तो उसका नीच गोत्र कर्म का उदय मानना । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - निम्न स्तर की जाति में जन्मे हुए जीवों का तिरस्कार करने से, उनके साथ दुर्व्यवहार करने से और उनके प्रति घृणा करने से 'नीच गोत्र' कर्म बँधता है। अपना उत्कर्ष करने से, दूसरों का अपकर्ष करने से नीच गोत्र कर्म बँधता है। - अपने कुल एवं जाति का अभिमान करने से 'नीचगोत्र' कर्म बँधता है। चेतन, भविष्य में नीचकुल में जन्म नहीं लेना हो और तिरस्कृत जीवन नहीं जीना हो तो दूसरे जीवों का तिरस्कार नहीं करना । अपकर्ष नहीं करना, अपने उच्च कुल-जाति का अभिमान नहीं करना । मन में भी नहीं लाना कि 'मेरा कुल उत्तम है... मेरी जाति महान ।' दूसरों के सामने ऐसा बोलना तो है ही नहीं । कभी, इसी जन्म में उच्च गोत्र कर्म का उदय समाप्त हो सकता है और नीच गोत्र कर्म का उदय शुरू होता है। दुनिया जिस को उच्च मानती है, नीच गोत्र कर्म के उदय से उसी को दुनिया नीच मानती है, उसका तिरस्कार करती है। भूल से भी हम नीच गोत्र कर्म नहीं बाँध लें, इस बात की सावधानी जीवनपर्यंत रखनी है और हमारे जीवन में यदि नीच गोत्र कर्म का उदय शुरू हो गया है तो दीन-हीन नहीं बनना है । परंतु स्वस्थ मन से, समता भाव से जीवन जीना है। इतना मनोबल होना ही चाहिए कि जब दुनिया के लोग हमारा तिरस्कार करते हों उस समय हम दीन-हीन नहीं बन जायं । मन में दुःख संताप का अनुभव नहीं करें । चेतन, इस 'कर्म-तत्त्व' का बोध कराने का मेरा लक्ष्य यही है कि हर समय तू स्वस्थ रहे, प्रसन्न चित्त रहे । स्वोत्कर्ष और परापकर्ष की भावना से तू मुक्त रहे । जिस प्रकार नीच गोत्र कर्म के उदय में दीन-हीन नहीं बनना है, वैसे उच्च गोत्र कर्म के उदय में उन्मत्त नहीं बनना है। अपनी प्रशंसा अपने मुँह से कभी नहीं करनी है। जो आजकल लोग करते रहते हैं अपनी प्रशंसा, अपने परिवार की प्रशंसा । अलबत्ता, परिवार के लोगों के गुणों की प्रशंसा कर सकते हैं। परंतु अपनी उच्चता प्रदर्शित करने के लिए नहीं । जैसे कि तुम्हारा लड़का जुआ खेलता है, १४७ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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