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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दूसरे जीवों की आँखें फोड़ डालने से, • रोष में, क्रोध में, आवेश में आक्रोश करना अंधा है क्या ? आँखें नहीं है क्या ?' वगैरह, www.kobatirth.org - दूसरों की सुंदर आँखें देखकर ईर्ष्या करने से .... - 'इसकी आँखें फूट जायं तो अच्छा है,' ऐसा सोचने से.... - - अंधे मनुष्यों का तिरस्कार करने से, उनको कटु शब्द कहने से... - अंधजनों का परिहास करने से, - - अंधजनों को सताने से, परेशान करने से, सहायता करने की शक्ति होते हुए, अंधजनों को सहायता नहीं करने से, ‘चक्षुदर्शनावरण' कर्म बँधता है। कान नाक - जिह्वा - स्पर्श, और - चेतन, सोचने में, बोलने में और व्यवहार में सावधान रहना । वैसे जिसके अपने घर में अंधजन होता है, उस घरवालों को विशेष रूप से सावधान रहना पड़ता है। चूँकि अंधजन कभी-कभी छोटी-बड़ी भूल कर बैठता है, उस समय उसके प्रति आक्रोश नहीं करना है । सदैव उसके प्रति घर के लोगों के हृदय में करुणा एवं सहानुभूति का झरना बहता रहना चाहिए । अब मैं तेरे दूसरे प्रश्नों का समाधान लिखता हूँ। वह बधिर क्यों बना? - 'क्या तेरी आँखें फूट गई हैं? - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह मूक- गूँगा क्यों बना ? चूँकि उन जीवों ने पूर्व जन्मों में "अचक्षुदर्शनावरण" नाम का दर्शनावरण कर्म बाँधा था। "अचक्षुदर्शनावरण" कर्म, दर्शनावरण कर्म का ही एक प्रकार है इस कर्म के अंतर्गत आँखों के अलावा - - मन इतनी इंद्रियों का समावेश होता है। इस पाँचों को 'अचक्षु' नाम दिया गया है। १३६ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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