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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया गया है, उस समय में पढ़ने से ये कर्म बँधते है। - ज्ञानदाता गुरु का अविनय करने से, उनके साथ तुच्छ शब्दों में संभाषण करने से, ये कर्म बँधते हैं। - ज्ञानदाता गुरु के प्रति हृदय में बहुमान का भाव नहीं रखने से ये कर्म बँधते है। - विद्वान बनने के बाद कोई पूछता है - 'आपने इतना सारा ज्ञान किस गुरु से पाया?' जिस गुरु से ज्ञान पाया हो, वे प्रसिद्ध नहीं हो, 'उनका नाम बताने से मेरी लघुता होगी, ऐसा मान कर, उनका नाम नहीं बताते हुए दूसरे प्रसिद्ध गुरु का नाम बताने से ये कर्म बँधते हैं। - सूत्र अशुद्ध बोलने से ये कर्म बँधते हैं। - ज्ञान प्राप्त करने के अनुकूल संयोग होने पर भी, प्रमाद से, आलस्य से जो ज्ञान प्राप्त नहीं करता है, ज्ञानप्राप्ति की प्रेरणा देनेवालों के प्रति द्वेष करता है... वह ये दो कर्म बाँधता है। - धर्मग्रंथों की जो निंदा-अवहेलना करता है, वह ये कर्म बाँधता है। - अपने से ज्यादा बुद्धिमान स्त्री या पुरुष की ईर्ष्या करने से, निंदा करने से ये कर्म बंधते है। जैसे, स्कूल में अपने से ज्यादा बुद्धिमान लड़के की, अध्यापक के द्वारा प्रशंसा होती है... दूसरे लोग भी उसकी प्रशंसा करते है, वह सुनकर जलन होती है... तो मतिज्ञानावरण कर्म बँधता है। - गाँव में कोई बुद्धिमान पुरुष हो, गाँव की हर समस्या को सुलझाता हो, लोग उसकी प्रशंसा करते हों... उसके प्रति ईर्ष्याभाव धारण करने से मतिज्ञानावरण कर्म बंधता है। - घर में तीन-चार भाई हैं, एक भाई बहुत ही बुद्धिमान है, माता-पिता उस लड़के की प्रशंसा करते हैं, वह सुनकर यदि दूसरे लड़के जलते हैं अपने मन में... ईर्ष्या करते हैं उसकी, तो वे मतिज्ञानावरण कर्म बाँधते हैं। - चेतन, हम साधु है न? साधु जीवन कर्म बाँधने का जीवन नहीं है, कर्मों का नाश करने का जीवन है। परंतु यदि हम लोग भी, जिनाज्ञा का पालन नहीं करते हैं तो कर्म बाँधते है। ० यदि हम प्रतिदिन नया ज्ञान नहीं प्राप्त करते हैं - (ज्ञान प्राप्त करने के ११७ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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