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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्षरात्मक ज्ञान, यह कर्म नहीं होने देता है। - जब यह कर्म प्रबल होता है तब हाथ-पैर की चेष्टा से अथवा छींक, उबाई __ वगैरह से होनेवाला ज्ञान भी नहीं होता है जीव को। - अतीत काल का और भविष्यकाल का चिंतन करनेवाली दीर्घ दृष्टि प्राप्त नहीं होने देता है। - अपने स्वयं के शरीर के पालन के लिए विचार करनेवाली, इष्ट और प्रिय विषय में प्रवर्तित करानेवाली, अनिष्ट और अप्रिय विषय से निवर्तित करानेवाली संज्ञा को, यह कर्म आवृत करता है। - मिथ्यादृष्टि जीव हो या सम्यग्दृष्टि जीव हो, यह कर्म उसको शास्त्रज्ञानी नहीं बनने देता है। उपदेशों को समझने नहीं देता है। - यह कर्म, किसी मनुष्य को सरल और सुबोध तत्त्वज्ञान भी नहीं पाने देता है, किसी मनुष्य को सरल-सुबोध तत्त्वज्ञान प्राप्त होता है परंतु दुर्बोध और कठिन तत्त्वज्ञान प्राप्त नहीं होने देता है। - किसी मनुष्य को वैदिक दर्शन के, बौद्ध दर्शन के, चार्वाक दर्शन के, और दूसरे दर्शनों के अध्ययन में रस होता है, परंतु जैन दर्शन के अध्ययन में रस नहीं होता है। कारण होता है श्रुतज्ञानावरण कर्म | - किसी व्यक्ति को कलाओं का ज्ञान पाने में अभिरुचि होती है, किन्तु विज्ञान में रुचि नहीं होती है। कारण होता है श्रुतज्ञानावरण कर्म। - किसी को मात्र एक पद का ही ज्ञान होता है, किसी को अनेक पदों का ज्ञान होता है, किसी को एक विषय का ज्ञान होता है, किसी को अनेक विषयों का ज्ञान होता है, किसी का ज्ञान अल्प होता है, किसी का ज्यादा होता है... ऐसा क्यों होता है? श्रुतज्ञानावरण कर्म की वजह से होता है। 'माष तुष' नाम के मुनिराज को ‘मा रुष, मा तुष...' ये दो पद बारह वर्ष तक याद नहीं हो पाए थे...क्यों? श्रुतज्ञानावरण कर्म उतना प्रबल था। शोभन मुनि भिक्षा लेने गए और भिक्षा ले कर आए- इतने समय में २४ तीर्थंकरों की अर्थगंभीर स्तुति, संस्कृत भाषा में बना दी। यह क्या था? श्रुतज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम। तीन वर्ष की छोटी सी उम्र में वज्रस्वामी ने साध्वीजी के मुँह से सुनते-सुनते ग्यारह अंग शास्त्र मुखपाठ कर लिए थे। श्रुतज्ञानावरण कर्म का कैसा अद्भुत १११ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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