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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'चारित्र-मोहनीय' कर्म के बंधहेतु लिखकर, पत्र पूर्ण करूँगा। - साधु-साध्वी की निंदा-गर्दा करने से, - धर्मसन्मुख मनुष्यों की धर्माराधना में विघ्न करने से, - जो मांसाहारी नहीं हैं, उन पर 'ये भी तो मांसाहारी हैं, ऐसा आरोप मढ़ने से, - जीवों की सुखप्राप्ति में और सुखभोग में अंतराय करने से, - जो चारित्री नहीं है, अचारित्री हैं, उनके गुण गाने से और जो चारित्री हैं, उनके चारित्र को दूषित करने से, - दूसरे जीवों के कषायों का उद्दीपन करने से, - दूसरे जीवों के नो-कषायों को जागृत करने से, जीव चारित्र-मोहनीय कर्म बाँधता है। चेतन, अन्य गृहस्थ विद्वानों की तुलना साधु-मुनि के साथ करते समय आजकल लोग होश में नहीं रहते। गृहस्थ की प्रशंसा करते हैं, साधु-मुनि की निंदा करते हैं! साधु-मुनि का मूल्यांकन विद्वत्ता की दृष्टि से नहीं किया जाता है, उनके गुणों से और चरित्र से किया जाता है। बहुत अच्छा ___ भाषण देने के बाद गृहस्थ अभक्ष्य खाता है, रात्रिभोजन करता है... और अनेक व्यसनों का सेवन करता है - फिर भी 'इस विद्वान ने बढ़िया भाषण दिया! बहुत अच्छा बोलते हैं... वगैरह। साधु पुरुष बढ़िया प्रवचन नहीं दे पाता है, परंतु महाव्रतों का पालन करते हैं... त्याग और तप करते हैं, ज्ञान और ध्यान में निमग्न रहते हैं... यह सब नहीं देखते हुए - ‘अपने साधु-मुनि अच्छा प्रवचन नहीं देते.. पर्युषण में वो का वो कल्पसूत्र पढ़ते हैं... भाषा भी आधुनिक है...' वगैरह। चारित्र मोहनीय कर्म बाँधने के कारण आज बहुत बढ़ गए हैं। चेतन, सावधान रहना । 'मुझे चारित्र मोहनीय कर्म नहीं बाँधना है, ऐसा दृढ़ संकल्प करना। तेरे प्रश्न का समाधान हो जाएगा, ऐसी आशा रखता हूँ। तू स्वस्थ रहे, यही मंगल कामना, - भद्रगुप्तसूरि १०३ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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