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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभी नहीं लिखता हूँ। आज तो विशेष रूप से नोकषायों को जीव कैसे बाँधता है, यह लिखता हूँ। - चेतन, कोई मनुष्य बहुत बोलता रहता है, व्यर्थ प्रलाप करता रहता है, तो हास्यमोहनीय कर्म बाँधता है। - जो मनुष्य प्रयोजन से अथवा बिना प्रयोजन हँसता रहता है, वह मनुष्य हास्यमोहनीय बाँधता है। हँसने का तात्पर्य जोर-जोर से हँसना। - किसी जीव का कुत्सित उपहास करने से भी हास्य मोहनीय बंधता है। दूसरों का उपहास करने से तो दूसरे पाप कर्म भी बंधते हैं। - देश-विदेशों का दर्शन करने की उत्सुकता से रति-नोकषाय बंधता है। - दूसरों के चित्त को आवर्जित-आकर्षित करने से रति-नो कषाय बंधता है। - पाँच इंद्रियों के विषयों में रमणता होने से भी रति-मोहनीय कर्म बंधता है। चेतन, हास्य और रति, सामान्य जीवन में उपादेय माने गए हैं। यानी सदैव खुश रहना और हँसते रहना, सुखी जीवन के आवश्यक तत्त्व माने गए हैं, परंतु अध्यात्म के क्षेत्र में ये दोनों तत्त्व हेय माने गए हैं। वैषयिक रति और हास्य, आत्मरमणता में बाधक तत्त्व हैं। रति-अरति के द्वंद्व में फसा हुआ मनुष्य, समत्व को सिद्ध नहीं कर पाता है। समत्व के बिना आत्मगुणों की पूर्णता नहीं पाई जा सकती है। हँसना और रोना-यह भी एक द्वंद्व है, जो मन की चंचलता को बढ़ावा देता है। मन को स्थिर नहीं होने देता है। इस दृष्टि से रति और हास्य को 'पापकर्म' कहे गए हैं। 'अरति' नाम का नोकषाय निम्न कार्यों से बंधता है - - दूसरों की ईर्ष्या करने से, - दूसरों की खुशी का नाश करने से, - दुष्ट स्वभाव से, और - दुष्ट कार्यों में प्रोत्साहन देने से। दूसरे जीवों की खुशी देख कर जो जलता है, वह 'अरति' - कर्म बाँधेगा ही और उस अरति-कर्म का उदय आने पर उस जीव को खुशियाँ नहीं मिलेगी यह स्वाभाविक है, और तर्कयुक्त है। दूसरे जीवों के आनंद का नाश करने से क्या आनंद मिलेगा जीव को? नहीं, १०० For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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