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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - चेतन, कभी किसी मनुष्य को गटर में पड़ा हुआ देखकर, उसके प्रति जुगुप्सा हुई है क्या? किसी मनुष्य के शरीर में से दुर्गंध आती है, उसके प्रति जुगुप्सा हुई है क्या? किसी रोगी मनुष्य के शरीर में गंदा खून बहता है, पीप बहता है, उसको देखकर तेरे मन में जुगुप्सा हुई है क्या? मरा हुआ चूहा देखकर, सड़ा हुआ मृतदेह देखकर तेरे मन में जुगुप्सा पैदा हुई है क्या? अथवा, ऐसा कुछ भी देखे बिना, ऐसी कल्पनायें कर कर, जुगुप्सा करता रहता है क्या? इसका मूल कारण जानता है क्या? 'जुगुप्सा' नामका नो-कषाय कारण होता है। यदि इस कर्म का उदय नहीं होगा तो, जुगुप्सा के प्रबल कारण-निमित्त सामने होते हुए भी तुझे जुगुप्सा नहीं होगी! तू घृणा नहीं करेगा। तेरा मन स्वस्थ रहेगा। ___ अब, तीन वेदों के विषय में समझाता हूँ। एक दिन तूने मुझे एकान्त पाकर पूछा था - 'गुरुदेव, मेरे मन में यौवनसभर सुंदर लड़कियों के प्रति... उनको देखते ही आकर्षण क्यों पैदा हो जाता है? संयोग और संभोग की इच्छा क्यों पैदा हो जाती है? कभी-कभी तो, कल्पना करने लगता हूँ सुंदर स्त्री की... कल्पना से ही विकार पैदा हो जाते हैं... मूढ़ बन जाता हूँ... और मैथुन क्रिया भी कर लेता हूँ....। निमित्त हो या मत हो... मन में स्त्री-संभोग की वासना जागृत हो जाती है।' तेरे उस प्रश्न का प्रत्युत्तर आज लिखता हूँ। स्त्री-संभोग की इच्छा... अभिलाषा पैदा होती है 'पुरुषवेद' नाम के नो-कषाय की वजह से । 'पुरुषवेद' नो-कषाय का जब-जब उदय होता है तब स्त्री-सेवन की वासना जागृत होती है। जिस प्रकार शरीर में श्लेष्म-द्रव्य का प्रमाण बढ़ने से खट्टा द्रव्य खाने की इच्छा होती है वैसे! यह पुरुष-वेद, तृण-आग के समान अल्पकालीन होता है। तृण घास में आग लगती है शीघ्र और बुझती है भी शीघ्र । वैसे पुरुष के मन में स्त्री-संभोग की इच्छा जागृत भी जल्दी होती है और संभोग से शांत भी शीघ्र हो जाती है। यह पुरुष-वेद, सभी पुरुषों में एक समान नहीं होता है। किसी जीव का पुरुष-वेद प्रबल होता है, किसी जीव का सामान्य प्रकार का होता है, किसी जीव ९६ For Private And Personal Use Only
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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