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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सम्यग्दृष्टि नारक मनुष्यगति पाता है, सम्यग्दृष्टि पशु-पक्षी देवगति पाते हैं! इसलिए किस दृष्टि से कौन सी बात कही गई है - यह समझना बहुत ही आवश्यक है। नयों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । 'नय' अनेक बताये गए हैं - - निश्चय नय और व्यवहार नय, - दृव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय, ज्ञाननय, क्रियानय... Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ़ और एवंभूत - नयदृष्टि से हर शास्त्रवचन को समझना चाहिए । जिनवचन नयगर्भित होते हैं। चेतन, कषायों के विषय में भी नय दृष्टि से सोचना - समझना ही आवश्यक है ! तू नयवाद का अध्ययन करना । यदि संक्षेप में नयवाद को पढ़ना हो तो मैंने ‘ज्ञानसार-विवेचन' के परिशिष्ट में नयवाद को लिखा है, नयवाद को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। एक बार पढ़ना । चार कषायों के विषय में लिखा है इस पत्र में। अब नो - कषायों के विषय में लिखूँगा । तू स्वस्थ रहे - यही मंगल कामना, ९३ For Private And Personal Use Only भद्रगुप्तसूरि
SR No.009640
Book TitleSamadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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