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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार की दीक्षा ८४ 'कुमार... रानी चेल्लणा बेवफा निकली... ऐसी रानी मुझे नहीं चाहिए... जला डाल उसके महल को! एक पल का भी विलंब किये बगैर मेरी आज्ञा का पालन कर!' गुस्से में दनदनाकर राजा ने हुक्म कर दिया। अभयकुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ । इतने बरसों में कभी उसने राजा और रानी चेल्लणा के बीच किसी प्रकार की अनबन या दूरी देखी-सुनी नहीं थी। महारानी चेल्लणा की पवित्रता और निर्दोषता पर अभयकुमार को अडिग विश्वास था। तब फिर राजा ने चेल्लणा के महल को जलाने का फतवा क्यों दिया? कुछ समझ में नहीं आ रहा है! जल्दबाजी में मुझे कुछ भी नहीं करना है। सोच-विचार कर कुछ उपाय ढूँढ़ना होगा।' उसने मन ही मन कुछ सोचकर उस वक्त तो राजा से कह दिया : 'पिताजी, आपकी आज्ञा का अविलंब पालन हो जाएगा।' अभयकुमार अपने महल पर गया। प्राभातिक कार्यों से निपटकर... वह अपना कार्य करने के लिए निकला। उसने रानी चेल्लणा के महल के आसपास देखा... वहाँ पर पाँच-दस झोंपड़े जैसे मकान खाली करवा दिये... और अपने खास आदमियों के द्वारा उनमें आग लगवा दी। इधर महाराजा श्रेणिक प्रातःकालीन कार्यों से निपटकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी के दर्शनार्थ गये थे। वहाँ पर भगवंत को वंदना करके उसने प्रश्न किया : 'प्रभो, मेरी सभी रानियाँ सती-पवित्र हैं... या असती हैं?' 'श्रेणिक, चेल्लणा वगैरह तेरी सभी रानियाँ सती हैं... पतिव्रता हैं!' सर्वज्ञ वीतराग भगवान पर श्रेणिक को अटूट विश्वास था। भगवान का प्रत्युत्तर सुनकर श्रेणिक का दिल दो टूक हो उठा! 'अरे... मैंने अभय को जो आज्ञा दी है... यदि उसने सोचे बगैर उसका पालन कर दिया तो बड़ा ही अनर्थ हो जाएगा! मैं जल्दी पहुँचूँ नगर में... और अभय को रोकूँ...!! श्रेणिक तीर की तरह समवसरण में से निकल कर रथ में बैठे | वेग से रथ को नगर की ओर दौड़ाया। अभयकुमार इधर से समवसरण की ओर चले आ रहे थे। उसके रथ को देखकर श्रेणिक ने अपना रथ रोका | अभयकुमार ने भी For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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