SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार ने बदला लिया ! 'पर तुम बड़ी जिद्दी हो !' 'अब तो नहीं हैं ना ? अब समय व्यर्थ नहीं गँवाना है... आपके पास यदि कुछ शस्त्र वगैरह हैं तो वह दूर रख दीजिए... हमें शस्त्रों का बड़ा डर लगता है।' ८० चंडप्रद्योत ने अपनी कमर में छुपाई कटारी निकालकर रूपा को दे दी... I दोनों बहनों ने कहा : ‘आप पलंग पर लेटिये, हम अभी कपड़े बदलकर आती हैं । ' दोनों बहन पास के खंड में चली गई। चंडप्रद्योत पलंग पर लेटा ही था कि इधर से अभयकुमार ने हाथ में लोहे की जंजीर लेकर खंड में प्रवेश किया। पाँचों सैनिक नंगी तलवार लिये पलंग को घेर कर खड़े हो गये । चंडप्रद्योत चौंक उठा... वह चिल्ला उठा... 'धोखा... धोखा...!' अभयकुमार ने कहा : ‘चिल्लाइये मत राजन्! आपकी चीख-पुकार सुननेवाला यहाँ कोई नहीं है...। सीधे रहिए। मैं आपको इस लोहे की जंजीर से बाँधूंगा... और बीच बाजार से उठाकर आपको राजगृही ले जाऊँगा !' 'कौन तू अभयकुमार है!' 'हाँ, महाराजा!' अभयकुमार ने जंजीर से चंडप्रद्योत को जकड़ लिया। चंडप्रद्योत सामान्य नागरिक के भेष में था...। नहीं था सिर पर मुकुट, या नहीं था बाजूबंद । या नहीं थी तलवार...! सुबह हो गई थी... बाजार में दुकानें भी खुलने लगी थी... रास्ते पर लोगों की आवाजाही भी चालू हो गई थी । अभयकुमार ने चंडप्रद्योत को हवेली के बाहर निकाला और उसे पकड़कर बीच बाजार से चलने लगे। चंडप्रद्योत चिल्लाता है ... ' मैं प्रद्योत हूँ... मैं राजा प्रद्योत हूँ... यह मुझे बाँधकर ले जा रहा है... मुझे छुड़वाओ... मुझे बचाओ...।' For Private And Personal Use Only लोग तो कई दिनों से यह तमाशा देख रहे थे। सभी उसके सामने देखते हैं और हँसते हैं...! लोग बातें करते हैं :
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy