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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अभयकुमार ने बदला लिया ! www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०. अभयकुमार ने बदला लिया ! ७४ उज्जयिनी से निकलते हुए अभयकुमार ने अपने मन में संकल्प किया था कि चंडप्रद्योत ने तो धोखे का सहारा लेकर मेरा राजगृही से अपहरण करवाया.... जबकि मैं दिन-दहाड़े उज्जयिनी के बीच बाजार से राजा चंडप्रद्योत को बाँध कर उठा ले जाऊँगा। वह भी राजा चिल्लाता रहेगा 'मुझे छुड़ाओ ... बचाओ..... मैं चंडप्रद्योत हूँ।' ऐसी दयनीय स्थिति बनाकर उसका अपहरण करूँगा ।' अभयकुमार राजगृही आये । राजगृही में किसी को हवा तक नहीं लग पाई थी कि अभयकुमार का अपहरण हो गया है...। सभी इसी खयाल में थे कि कुछ कार्यवश अभयकुमार बाहर - उज्जयिनी की ओर गये हुए हैं। कुछ दिन बीत गये। अभयकुमार ने राजगृही की एक नृत्यांगना की दो जवान और सुंदर लड़कियों को बुलाया और कहा : 'तुम्हें मेरे साथ दूसरे गाँव चलना है। बोलो, चलोगी?' 'तुम दोनों को एक-एक हजार सोनामुहरें दूँगा । एक बात का खयाल करना... तुम्हें मेरी पहचान तुम्हारे एक भाई के रूप में देने की और मैं भी तुम्हारा परिचय मेरी बहन के रूप में दूँगा !' दोनों युवतियों ने कहा : 'महामंत्रीजी, आप यह क्या कह रहे हैं? हमें सोनामुहरें क्या करनी है ? हमें तो आप जैसे महापुरुष 'भाई' के रूप में मिल गये, यही काफी है । हम तो वापस यहाँ लौटने के बाद भी आपको भाई ही मानेंगे। पर हमें आपके साथ आकर करना क्या है?' 'वह मैं तुम्हें रास्ते में बतलाऊँगा...। तुम दोनों जैसी हो वैसे ही रहोगी । मैं अपना भेष बदलूँगा। मैं व्यापारी का भेष धारण करूँगा। मेरे रूप-रंग बदल जाएंगे। मुझे कोई अभयकुमार के रूप में जान नहीं पाये, वैसा रूप मैं रचाऊँगा!' For Private And Personal Use Only 'तब तो कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण एवं गुप्त लगता है!' ‘हाँ... वैसा ही है। थोड़ा खतरा भी है। फिर भी तुम्हें तनिक भी डर नहीं रखना है।'
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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