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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार का अपहरण ७१ दूर थी। लौहजंघ उज्जयिनी से भृगुकच्छ पैदल चलकर आता था और जाता था। तीन दिन में वह भृगुकच्छ पहुँच जाता और तीन दिन में वापस उज्जयिनी लौट आता था। उज्जयिनी से जब निकलता तब राजमहल में से रास्ते के लिए नाश्ते का डिब्बा [भाथा] ले लेता था। और भृगुकच्छ से रवाना होते समय वहाँ के नगरसेठ के घर से नाश्ता ले लेता था। __ लौहजंघ से असंतुष्ट प्रजा के प्रतिनिधि नगरसेठ के घर पर एकत्र हुए और लौहजंघ के अत्याचार में से छूटने का उपाय खोजने लगे। काफी सोचविचार के बाद उस गुप्त मंत्रणा में तय किया गया कि किसी भी कीमत पर लौहजंघ को मार डालना! और उपाय भी मिल गया। लौहजंघ को जो नाश्ता दिया जाय उसमें जहर मिला देना। परंतु एक विचक्षण वैद्य ने कहा : 'शायद उस दुष्ट को जहर का असर न भी हो... वह महाकाय भीम जैसा है...| जहर को भी पचा डालेगा...। तो अपनी मेहनत पर पानी फिर जाएगा! मैं तुम्हें दो प्रकार के ऐसे द्रव्य देता हूँ... उन्हें लड्डु के साथ नाश्ते के डिब्बे में रख देना । उसके मिलने से डिब्बे में दृष्टिविष सर्प पैदा हो जाएगा। जैसे ही वह भीम का बच्चा डिब्बा खोलेगा... तो दृष्टिविष सर्प की आँखें उस पर गिरते ही वह जल कर राख हो जाएगा।' सभी को यह उपाय अँच गया। दूसरे ही दिन लौहजंघ भृगुकच्छ आया। तीन दिन रहकर वापस उज्जयिनी लौटने को तैयार हुआ। नगरसेठ के घर से उसने नाश्ते का डिब्बा लिया और चल दिया अपनी राह पर! दोपहर का समय बीतने लगा था। तीसरे प्रहर में एक नदी के किनारे पर वह खाने के लिए रुका, पर उसे वहाँ बुरे शकुन हुए...। लौहजंघ शकुन-अपशकुन में बड़ी आस्था रखता था। उसने नाश्ते का डिब्बा खोला ही नहीं...। खड़ा होकर डिब्बा रखा सिर पर और आगे को चल दिया | चार मील चलने के बाद वापस एक घटादार पेड़ के तले खाने के लिए बैठा तो वहाँ पर भी अपशकुन हुए...। उसने डिब्बा नहीं खोला...। डिब्बा उठाया और आगे बढ़ गया। इसी तरह तीसरी बार भी उसे अपशकुन हुए... उसने खाया ही नहीं...। भूखा ही उज्जयिनी पहुँचा। उसने सीधे ही जाकर राजा चंडप्रद्योत से बात की : For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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