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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार का अपहरण ६८ दूसरे दिन तीनों औरतों ने स्नान वगैरह करके पूजा के सुंदर वस्त्र पहने । चाँदी की थाली में पूजा के लिए जरूरी सामग्री ली और वे नगर में पहुंची। मालिन ने जो मंदिर बताया था... वहाँ जा पहुँची। तीनों स्त्रियों ने भावपूर्वक पूजा की। चैत्यवंदन प्रारंभ किया। 'मालकौंस' राग के मधुर सुरों में परमात्मा की स्तवना करने लगी। इतने में अभयकुमार ने मंदिरजी में प्रवेश किया। परमात्मा के दर्शन किये और बाहर खड़े रहे। 'ये महिलाएँ परदेशी मालूम होती हैं। परमात्मा की भक्त लगती हैं। साधर्मिक बहनें हैं। मैं इन्हें भोजन के लिए निमंत्रण दूं।' वे तीनों स्त्रियाँ मंदिर के बाहर आई तो अभयकुमार ने उनको प्रणाम करते हुए उनका अभिवादन किया। 'मैं अभयकुमार, आपको नमस्कार करता हूँ। आपका परिचय?' नृत्यांगना ने कहा : 'मैं उज्जयिनी नगरी के एक धनाढ्य सेठ की विधवा हूँ। ये दोनों स्त्रियाँ मेरी पुत्रवधूएँ हैं। हम तीर्थयात्रा के लिए निकली हैं।' अभयकुमार ने कहा : 'मेरे घर पर भोजन के लिए पधारिये!' नृत्यांगना सलीके से बोली : 'महामंत्रीजी, आपकी मेहरबानी है...। आपकी साधर्मिक भक्ति तो प्रसिद्ध है। पर आज हमको उपवास है, आज तो आपके मेहमान हो नहीं सकते! हमें क्षमा करें।' ___ 'ठीक है, तो कल सबेरे उपवास का पारणा मेरे घर पर करने की कृपा करें। आपको लेने के लिए मेरा आदमी आयेगा, आप ठहरे कहाँ पर हैं?' अभयकुमार ने प्रसन्न होकर कहा। 'हम तो नगर के बाहर बगीचे में ठहरे हैं।' अभयकुमार ने कहा : 'अच्छा तो, कल आप तीनों मेरी मेहमान बनेंगी। पधारियेगा।' अभयकुमार चले गये। नृत्यांगना ने अपने साथ की स्त्रियों से कहा : For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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