SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार का अपहरण ६४ 'एक समस्या पैदा हुई है। उज्जयिनी का राजा चंडप्रद्योत बड़ी भारी सेना के साथ राजगृही की ओर आगे बढ़ रहा है... शायद कल तक राजगृही शत्रु के सैनिकों से घिर भी जाए। तुम राजगृही के चारों दिशा के दरवाजे बंद करवा दो। किले के बुर्ज पर मगध सैनिकों के चुस्त दस्ते जमा कर दो...। ताकि वे चौकन्ने रहकर दुश्मनों की गतिविधियों पर सतर्क नजर रख सकें। और... तुम अपने अत्यंत विश्वसनीय सैनिकों को साथ लेकर उस जगह का निरीक्षण करो, जहाँ कि दुश्मनों की सेना अपना पड़ाव डालनेवाली है...। वहाँ पर उस जमीन में इधर-उधर चौतरफ ये चौदह लाख सोनामुहरें इस तरह गाड़ दो कि किसी को पता तक ना लगे। आज रात में यह कार्य पूरा हो जाना चाहिए।' ___ अभयकुमार ने चौदह लाख सोनामुहरों की थैलियाँ राजपुरूषों को सुपुर्द कर दी। राजपुरुषों को अभयकुमार की बुद्धि पर पूरा भरोसा था। उन्होंने अभयकुमार से पूछा भी नहीं कि 'सोनामुहरें जमीन में क्यों गाड़ना' वे सोनामुहरों की थैलियाँ लेकर चले गये। किले के सभी दरवाजे बंद करवा दिये। किले पर दस हजार शस्त्रसज्ज चुनंदे सैनिकों को नियुक्त कर दिये। रात्रि का प्रारंभ होते ही, अभयकुमार के वे निजी राजपुरुष नगर के बाहर निकले । नगर के चौतरफ छोटे-छोटे गड्ढे खोद कर उसमें चौदह लाख सोनामुहरें गाड़ दी। राजा चंडप्रद्योत या उसके साथ के राजाओं को हवा तक न लगे इस ढंग से काम निपटाकर, वे नगर में लौट आये। अभयकुमार को समाचार दे दिये। अगले दिन सबेरे राजा चंडप्रद्योत की विशाल सेना राजगृही के परिसर में आ पहुँची। चंडप्रद्योत की आज्ञा के मुताबिक सेना ने चारों ओर से राजगृही को घेर लिया। अभयकुमार का जो अंदाज था वह सही निकला। जिस जगह पर सोनामुहरें गाड़ी गई थी... करीब-करीब वहीं पर चंडप्रद्योत और चौदह राजाओं की रावटियाँ लग गई। अभयकुमार ने राजा चंडप्रद्योत को संबोधित करके एक पत्र लिखा : 'मालवपति महाराजा चंडप्रद्योत, सबसे पहले मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मागध महारानी चेल्लना और मालव महारानी शिवादेवी-इन दोनों में मैं कोई भी भेद नहीं रखता। मेरे लिए दोनों पूजनीय हैं। उस संबंध के नाते आप भी मेरे लिए For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy