SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिलना पिता से पुत्र का! ५२ __'बेटा... लड़के लोग तो बोलते रहते हैं...। तेरे पिताजी हैं... एक दिन वे अपने वहाँ आये थे। राजकुमार सा उनका रूप और वे थे भी महान भाग्यशाली। मेरी उनके साथ शादी हुई। दो साल वे यहाँ रहे। तू मेरे पेट में था... और उन्हें अचानक यहाँ से एक दिन जाना पड़ा। वे गये सो गये... वापस न तो वे आये... न कोई समाचार आया उनका! ____ हाँ, जाने से पहले मैंने उन्हें पूछा था... 'अपने बेटे का नाम क्या रखेंगे?' तो उन्होंने कहा था 'अभयकुमार!' मैंने उनसे पूछा था... जब अपना बेटा समझदार होगा और पूछेगा कि मेरे पिता कहाँ गये हैं... तब मैं उसे क्या जवाब दूंगी...? तब उन्होंने कहा : 'मैं चित्रशाला की दीवार पर लिखकर जाता हूँ... वह तू उसे पढ़वा देना।' 'माँ, मेरे पिताजी जो लिख गये हैं... वह तू मुझे बता तो सही!' सुनंदा अभय को लेकर चित्रशाला में गई। दीवार पर का लिखा हुआ अभय ने पढ़ा। अभय ने अपनी बुद्धि से सोचा। उसकी समझ में सारी बात आ गई। उसने सुनंदा के सामने चुटकी बजाते हुए कहा : ___ 'माँ... मुझे मालूम हो गया... पिताजी कहाँ हैं? पर मैं अब उनके पास जाऊँगा!' 'बेटा... तू जाएगा तो मैं भी तेरे साथ जाऊँगी!' ‘पर माँ! नाना-नानी अपने को इजाजत देंगे?' 'देंगे... जरूर देंगे... | चल, हम उनके पास चलें!' धनसेठ और सेठानी सुनंदा व अभय की बातें सुनकर रो पड़े, चूंकि सुनंदा और अभय से उन्हें बहुत ही लगाव था। फिर भी वे चाहते थे कि अभय उसके पिता से मिले और सुनंदा का भी अपने पति से मिलना हो। उन दोनों ने सुनंदा-अभय को आशीर्वाद दिये। रथ दिया। नौकर-चाकर के साथ जरूरी सामान देकर प्रेम से उन्हें राजगृही की ओर बिदाई दी। For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy