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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अभयकुमार www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५ ७. अभयकुमार कुछ ही दिनों में श्रेणिक भीलराजा के इलाके में पहुँच गया। उसने अपने मन में सोचा : 'भीलराजा आक्रमण करे... उससे पहले तो मैं ही उन पर टूट पहूँ ! यही सही व्यूह होगा । दुश्मन को दिन दहाड़े ललकारना ही शौर्य की निशानी है ।' कुमार ने भीलराज की राजधानी के दरवाजे खटखटाये ! उसने अपना 'भंभा' वादित्र जोर-जोर से बजाना चालू किया । भील राजा को पता चल गया कि 'वह छोकरा ... जो मेरी बेटी को शादी से इन्कार करके नौ-दो ग्यारह हो गया था, अब बड़ी सेना लेकर अपनी ताकत बताने आया लगता है... पर वह बुद्ध है... उसे पता कहाँ है ... मेरी और मेरे भील सैनिकों की ताकत का ? मच्छर की तरह मसल कर रख दूँगा मैं उसे!' भीलराजा अपने सैनिकों के साथ किले के बाहर आया... हजारों भील तीर-कमान से सज्ज होकर एकत्रित थे...। 'मारो...काटो...दुश्मन जिन्दा न जाने पाये... । ' का हल्ला करके कुमार पर तीरों की बौछार सी कर दी ! पर श्रेणिक चालाक था । उसने पहले ही 'अंगरक्षक' रत्न का स्मरण करके अपने चारों ओर एक बख्तर - कवच सा निर्माण कर दिया था । शत्रु का एक भी शस्त्र उसे छूता ही नहीं था ! भील लोगों को तो लेने के देने पड़ गये! वे आँखें चौड़ी कर-कर के कुमार को देखने लगे ! धीरे-धीरे उन्होंने कुमार पर तीर चलाना बंद कर दिया... और वे कुमार के पास आकर झुककर प्रणाम करने लगे। भील सेना का सेनापति कुमार से डर कर वहाँ से रफूचक्कर होने का मौका तलाश रहा था कि कुमार ने उसे पकड़ लिया। मोटे रस्से से उसे बाँधकर रख दिया। कुमार की सेना ने कुमार के जयजयकार से गगन को गूँजारित कर दिया। For Private And Personal Use Only धरती तो शूरवीर पुरुषों के कदमों तले रहती है। जंगल में कौन सिंह का राज्याभिषेक करता है? वह तो अपने पराक्रम और अपनी ताकत के बल पर ही राज चलाता है ।
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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