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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ अंधी राजकुमारी देखे लगी 'कुमार... मुझे भी ऐसा ही कुछ लगा! ठीक है, मैं अभी उसके पास जाकर के उसके मन की बात जानती हूँ और फिर तुम्हें बताती हूँ।' सुनंदा की माँ सुनंदा के पास पहुंची। उसके निकट पलंग पर बैठकर उसने बड़े प्यार से पूछा : __'क्या हुआ है बेटी तुझे? तेरी आँखों में आँसू क्यों? तुझे किस बात का दुःख है? क्या कुमार ने तुझसे कुछ कहा है?' 'नहीं... नहीं माँ! वैसा कुछ भी नहीं है! उन्होंने तो कभी मेरा दिल भी नहीं दुःखाया है!' __'तब फिर तेरा शरीर दिन-प्रतिदिन यों कृश क्यों हुआ जा रहा है? तेरी काली कजरारी आँखों में खुशी के फूलों की जगह आँसू के साये क्यों? तेरे मन में जो भी हो, मुझे कह दे मेरी लाड़ली! मुझे नहीं कहेगी तो किससे बोलेगी अपने जिये की बात! बेटी अपने सुख-दुःख की बात अपनी माँ से ही तो कहती है! माँ से क्या कुछ छुपाए रखेगी?' 'माँ...मैं क्या कहूँ? मेरे मन की बात तुझे कहने का कोई अर्थ नहीं है! मेरे मन में जो इच्छा पैदा हुई है... वह कोई भी पूरी नहीं कर सकता! और यदि मेरी मनोकामना अधूरी रही तो शायद मेरे प्राण ही...।' _ 'नहीं बेटी! ऐसी बुरी बात नहीं निकालते मुँह से! क्यों इतनी निराश हो बैठी है? इस दुनिया में ऐसी भी भला कौन सी बात है जो अपने कुमार के लिए अशक्य हो... असाध्य हो! तूने देखा नहीं क्या? दो साल पहले अपनी क्या तो हालत थी और आज यह शान-शौकत सब किसके कारण है? इतनी समृद्धि और सिद्धि किसकी बदौलत है? इसलिए तू मन में तनिक भी शंकासंदेह रखे बगैर तेरे मन की बात मुझसे कह दे री!' सुनंदा को माँ की बात में सच्चाई नजर आई। उसे भी लगा की मेरे पति के लिए कुछ भी अशक्य या असहज नहीं है! उसका मन आश्वस्त हो उठा। उसने जमीन कुरेदते हुए कहा : ___ 'माँ, न जाने कैसे... पर जब से कोई उत्तम आत्मा मेरे पेट में गर्भरूप में आई है... तब से तरह-तरह की कल्पनाएँ-कामनाएँ मन में उठती हैं... समुद्र में उठते ज्वार की भाँति! मेरे मन में होता है : 'मैं गजराज पर बै→ एक राजरानी की तरह! रोजाना राजमार्ग पर से दान देती हुई जिनेश्वर भगवान के मंदिर में जाऊँ! परंतु जब मैं घर से निकलूं... तब राजा भी उसके परिवार For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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