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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेजमतूरी का कमाल बेनतट नगर में धन श्रेष्ठि और देवनंदि श्रेष्ठि की प्रशंसा होने लगी। लोग कहने लगे : __ 'जब से धन श्रेष्ठि के घर पर परदेशी कुमार आया है... तब से धन श्रेष्ठि की दिन ब दिन उन्नति हो रही है। धन श्रेष्ठि की पुत्री सुनंदा भी कितनी भाग्यशाली है! कितना रूपवान, गुणवान और पुण्यशाली पति उसे मिला है!' धन श्रेष्ठि के साथ देवनंदि घर पर आया । श्रेणिककुमार ने स्वागत किया। तीनों हवेली के मुख्य खंड में एकत्र हुए। देवनंदि ने कहा : 'महानुभाव! अब मैं यहाँ से प्रयाण करूँगा। आपने मेरा बहुत ध्यान रखा है... मुझे काफी कमाई करवाई है... मुझे जो वस्तु चाहिए थी वह मुझे दी है... मैं आप दोनों को कभी भी नहीं भुला सकता! आप भी मुझे भुला मत देना!' देवनंदि की आँखों में आँसू आ गये। श्रेणिक ने कहा : 'श्रेष्ठिवर्य, हम तुम्हें कैसे भुला सकेंगे? तुम इस नगर में आये तो धन सेठ की किस्मत भी पलटी। तुम्हारे कारण ही उन्हें उनका नगरसेठ पद वापस मिला है। ढेर सारी संपत्ति उन्हें प्राप्त हुई है।' धन सेठ बोले : 'महानुभाव, जो कुछ भी अच्छा हुआ है... वह इन कुमार के आने से ही हुआ है... अपना जो रिश्ता कायम हुआ है... वह हमेशा बढ़ता ही जाएगा। जब तब संदेश भिजवाते रहेंगे और पत्र भी लिखते रहेंगे। आप खुशी के साथ पधारिये।' श्रेणिक ने कहा : 'श्रेष्ठिवर्य, आपका मार्ग निर्विघ्न हो... आपका कल्याण हो... आपके मनोरथ पूर्ण हो... कभी मौका आये तो हमें अवश्य याद करना।' देवनंदि ने बेनातट नगर से प्रयाण किया। श्रेणिक ने धन श्रेष्ठि से कहा : 'अब हमें अपनी नई संगमरमर की हवेली बनवानी चाहिए | बेन्नातट नगर में किसी की भी न हो वैसी अद्भुत और आलीशान हवेली का निर्माण करवाना चाहिए | बाहर से कुशल कारीगरों को, शिल्पियों को बुलवाकर काम चालू करवा दें!' For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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