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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सही दिशा की ओर ६२ कुमारिकाओं की कहानी की काल्पनिकता और हेतुता समझ ली थी। मित्रदेवों द्वारा उसकी स्त्री-आसक्ति को तोड़ने के लिए रची हुई इन्द्रजाल की तो उसे प्रतीति हो गयी थी, पर सीमंधर स्वामी के दर्शन में यथार्थता की उसे श्रद्धा थी। मित्रदेव उसे महाविदेह में ले गये थे, यह बात सम्पूर्ण सत्य और तथ्यपूर्ण थी। इन्हीं विचारों में खोया-खोया वह अपनी कल्पनासृष्टि को 'महाविदेह का रूप दे बैठा। सीमंधर स्वामी के समवसरणमय उसकी दृष्टि बन गई। उस सृष्टि में उसने कभी जिसका अनुभव न किया हो ऐसी प्रसन्नता प्राप्त की। ऐन्द्रिक भूमिका से उठकर उसने दिव्य सुखानुभूति की। उसने मन ही मन अपनी समग्रता से परमात्मा को चाहा। इस चाह में उसने परमतृप्ति का अनुभव किया। कामगजेन्द्र के समूचे जीवन पर एक प्रहर के इस अनुभव ने गहरा प्रभाव डाला | उसकी इन्द्रियाँ शान्त हो गयी। उनका मन प्रशांत बन गया। 'स्वामिन्! प्रियंगुमति के शब्दों ने कामगजेन्द्र को विचार भूमि से वास्तविकता की वेदी पर खींचा। 'क्या?' 'मुझे एक विचार आया!' 'बोलो!' कामगजेन्द्र की आँखें प्रियंगुमति पर ठहरी । 'समीप की धरती पर चरमतीर्थंकर परमात्मा महावीरस्वामी विराजमान हैं, अपन परमात्मा के दर्शनार्थ चलें और वहाँ आपका रात्रि-अनुभव उनसे निवेदन करें तो?' 'सुन्दर विचार है देवी! भगवन्त के दर्शन का लाभ मिलेगा और अनुभूति की यथार्थता भी सिद्ध हो जायेगी। रथ तैयार करने की सूचना दे दो।' 'जैसी आपकी आज्ञा', प्रियंगुमति ने प्रतिहारी को बुलाकर रथ तैयार करने की सूचना दे दी। कामगजेन्द्र ने शुद्ध कपड़े पहने। प्रियंगुमति ने भी श्वेत रेशमी वस्त्रों से अपने को सजाया। कामगजेन्द्र का सुशोभित रथ श्रमणभगवान महावीर स्वामी के समवसरण की ओर दौड़ रहा था। प्रकृति ने अपना नया शृंगार किया था, पर उसे देखने की उत्कंठा न तो कामगजेन्द्र को थी न ही प्रियंगुमति को थी। दोनों गहरे विचारों में डूबे थे। जब मनुष्य के हृदय में कोई प्रश्न पैदा होता है, जब-तक उसका सुखद निराकरण नहीं आता तब-तक उसे बाहर की दुनिया का सौन्दर्य भाता नहीं है। For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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