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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२ अनुभूत आश्चर्य ‘पर यह तो कहिए कि आपको वे दो विद्याधर कन्याएँ कहाँ ले गयी थीं और आपने वहाँ क्या देखा? क्या अनुभव किया? और आप वापस कैसे लौटे?' प्रियंगुमति ने अपने दिमाग में आये हुए प्रश्नों का जाल बिखेरते हुए कहा। 'पहले सेनापति को कहला दो कि आज यहीं रुकना है, प्रयाण नहीं करना है।' ___ 'जैसी आपकी आज्ञा ।' प्रियंगुमति ने प्रतिहारी को बुलाकर सेनापति को सूचना भिजवा दी। उसके मन में विचार आया : 'मैंने मेरे प्रश्न उनसे पूछ तो लिये, पर यदि वे स्नान आदि से निवृत हो जायें, स्वस्थ बन जायें तो शायद उनकी प्रसन्नता बढ़ेगी और बातें करने में ज्यादा मजा आयेगा।' उसने कामगजेन्द्र के लिए गरम और शीतल जल की व्यवस्था करके कामगजेन्द्र को स्नानादि से निवृत होने के लिए निवेदन किया। स्नान वगैरह करके कामगजेन्द्र के शरीर की थकान दूर हो गई। ग्लानि भी हल्की हो गयी। प्रियंगुमति ने उसके पास बैठते हुए कहा : 'स्वामिन्, अब आप मुझे सारी बातें बतलाइये!' ___ कामगजेन्द्र ने एक निगाह प्रियंगुमति के चेहरे पर डाली और आँखें बंद करके बोलने लगा : 'विद्याधर कन्याओं के साथ नीलाकाश में हमारा विमान बादलों के आरपार होकर उड़ रहा था। शरद की रात ऐसे बीत रही थी जैसे नई नवेली दुल्हन के पाँव उठते हों अपने प्रियतम के पास जाने को।' गगन की गोद में तारों की चूनर ओढ़े चन्द्रमा काफी खूबसूरत लग रहा था। विमान में से पृथ्वी, बड़ी सुहावनी लगती थी। __पहाड़ों की श्रृंखलाएँ...वृक्षों की पंक्तियाँ...सरोवर...नदियाँ...सभी सौन्दर्य से भरे पूरे नजर आते थे। मुझे लगता था ‘क्या मैं देव हूँ?' वो दोनों विद्याधर कन्याएँ मुझे मीठे-मीठे स्वरों में कहती थी : ___'देखो! कामगजेन्द्र, उस जंगल में वह हाथी कैसी मस्ती में है। हथिनी के कुंभस्थल पर अपनी सूंड को फैलाकर कितनी मस्ती में सो रहा है! ये चमकते असंख्य तारे! मानों गगन पर किसी ने फूलों की चादर बिछा दी हो! मधुर चाँदी की घंटियों सी गूंजती उनकी आवाज में ये सारा प्रकृति-दर्शन मुझे अपूर्व अनुभूति की ओर ले जा रहा था । हम एक पर्वत पर जहाँ उनका निवास स्थान For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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