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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिन्दुमती सकती थी। हमारी बैचेनी का पार न रहा। हमने सोचा : यदि कामगजेन्द्र से इसका मिलना न हुआ तो शायद वह जिन्दा भी रह सकेगी या नहीं। इसलिये कैसे भी करके कामगजेन्द्र को यहाँ ले आना चाहिए।' ऐसा सोचकर हमने बिन्दु से कहा : 'सखि, तू' यहीं पर रहना! हम दोनों कामगजेन्द्र को खोजकर ले आती हैं।' वह मान गई हमने उसको पर्वत की एक गुफा में पत्थर की शिला पर ताजे खिले हुए कमल-पत्रों की शैय्या बनाकर सुला दिया और आकाशमार्ग से चल दी। ____ अनेक नगर, पर्वत और जलाशयों में ढूँढ़ती हुई हम यहाँ के प्रदेश में पहुँची। फिर भी तुम्हारा नगर हमें नही मिल पाया! 'तुम्हें कहाँ खोजना?' हमारी कठिनाई बढ़ती जा रही थी। आखिर हारकर हमनें 'प्रज्ञप्ति, नाम की विद्या देवी को याद किया। उन्होंने हमें आपका यह स्थान बतलाया और हम आपके पास आने के लिये भाग्यशाली रही। विद्याधर कुमारी ने सांस ली और कामगजेन्द्र के चेहरे पर उभरते भावों को समझने का प्रयत्न करने लगी। कामगजेन्द्र तो तल्लीन बनकर कुमारियों की बातों में खो गया था। उसके मन में बिन्दुमति की तरफ पूरी सहानुभूति पैदा हो चूकी थी। 'मुझे उस राजकुमारी को बचाना ही चाहिये।' सोचकर उसने पूछा : 'कहो, अब क्या किया जाय तुम्हारी प्रिय सखी की सांत्वना के लिए?' ___ 'राजकुमार, एक ही उपाय है। यदि आपका दर्शन-आपका सहवास उसे मिले तो ही वो बच सकती है। आपको अविलम्ब उसके पास चलना चाहिए, यदि उसकी जिन्दगी को बचाना है तो। मुझे तो लगता है कहीं वह मौत की नींद में न जा बैठे...!!' विद्याधरी का स्वर संवेदना से सिसकने लगा। कामगजेन्द्र ने कहा। 'देरी करनी ही नहीं है। ऐसी परिस्थिति में भला देर करना भी कोई बुद्धिमानी थोड़े ही होगी? पर मुझे यह सारी बात प्रियंगुमति से करनी होगी।' 'प्रियंगुमति कौन?' दोनों सुन्दरियाँ चौंकती हुई बोल उठी। 'यह जो सो रही है। वह ।' कुमार ने इशारे से पंलग पर सोयी हुई प्रियंगुमति को दिखाया! ___ 'तो क्या आप इतनी रहस्यपूर्ण बात औरत को कहेंगे? नीतिशास्त्र तो मना करते हैं गुप्त बातों में स्त्रियों को शामिल करने का।' For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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