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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० दीदी 'हाँ, पर यदि पत्नियों के बीच मेल-जोल न हो, ईष्या-द्वेष वगैरह पैदा होते हों तो फिर बेचारे उस पुरुष की पूरी बारह कब बज जायेगी! और जिनमति खिलखिला उठी। ___ ‘पर जिनु, स्त्रियों में ईष्या और उसमें भी अपनी सौत पर तो डाह हो ही जाती है। __ 'होता है ऐसा भी, पर सभी की बात ऐसी नहीं होती। स्त्रियाँ उदार विचारवाली गम्भीर हृदय की भी होती ही हैं। अरे, वह बात छोड़ो, अपने तो पुण्य का सिद्धान्त मानते है ना? तो फिर सीधी और सच बात यही है कि पुण्यशाली पुरुष को स्त्रियाँ भी इतनी सरल और अनुकूल ही मिलेगी। यदि उसका पापोदय होगा तो उसे एक पत्नी भी ऐसी कर्कशा मिलेगी कि नाकों चना चबवा देगी। जिनमति की हँसी में प्रियंगुमति की हँसी भी मिल गयी। ___ 'जिन, वैदिक धर्म तो एक ही पत्नी का सिद्धान्त मानता है ना?' 'हाँ दीदी! बड़े भोलेपन से उसने कहा- "राम को एक पत्नी होने की बात करते है परन्तु कृष्ण के कितनी पत्नियाँ थी? कितनी गोपियों के साथ कृष्ण ने रास रचाये थे? 'हाँ, यह तो बड़ी बेहूदी बात लगती है।' प्रियगुंमति जिनमति की तर्कशक्ति पर आफरीन हो उठी। जिनमति की नजर पश्चिम के वातायन की तरफ गयी। सूर्य अस्ताचल की तरफ आगे बढ़ रहा था। साँझ की बेला घिर रही थी। वह चौक उठी। 'दीदी, अच्छा तो अब मैं चलूँ । माँ राह देख रही होगी। पिताजी और भैया भी तो भोजन के लिए आ गये होंगे।' ___ 'तुम सब साथ ही खाना खाते हो,?' 'हाँ दीदी, शाम का खाना हम सब साथ ही खाते हैं।' 'कितना प्यारभरा परिवार है तेरा! सच, तू बड़ी भाग्यशालिनी है। अच्छा, बता, वापस कब लौटेगी?' 'तुम कहो तब दीदी। __ 'तो आज शाम को देवदर्शनादि से निवृत होकर आ जाना। माँ को बोल देना- रात यहीं रुकना, बातें करेंगे।' ‘पर युवराज...?' For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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