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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दीदी www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ ३. दीदी ‘आओ, जिनमति! कितने दिनों से तुम्हें मिलना चाहती थी। प्रियंगुमति ने कल्याणी के साथ जिनमति को आते देखकर प्रसन्नता व्यक्त की । 'हाँ, महादेवी, मैं भी बड़ी उत्सुक थी आपसे मिलने के लिए। जिनमति प्रियंगुमति के निकट आती हुई बोली । 'ओह उधर नहीं, इधर आओ न ! मेरे समीप बैठो।' प्रियंगुमति ने जिनमति जो कि बीच में रखे हुए भद्रासन पर बैठ रही थी, को अपने पास पंलग पर बैठने का इशारा किया । जिनमति कुछ झिझकती हुई पलंग पर जा बैठी । प्रियंगुमति ने जिनमति के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा- 'कितनी अच्छी हो तुम! मुझे कल्याणी ने तुम्हारे बारे में बहुत सी बातें बतायी है ! तुम्हारा नाम कितना प्यारा है!' 'महादेवी, आप नाहक ही मेरी प्रशंसा के पुल बाँध रही हो। मुझमें ऐसी कोई विशेषता नहीं है। आपके व्यक्तित्व के आगे तो मैं सूरज के सामने जुगनू की भाँति लगती हूँ। मुझे कल्याणी ने आपके बारे में कुछ बातें बतायी है, सच कहूँ? मैं तो कल्याणी की बातें सुनकर मन ही मन आपसे प्यार करने लगी हूँ!' 'अच्छा, तो कल्याणी ने तुम्हें मेरे बारे में सब झूठी बातें ही बतलायी है, भला, मैं कहाँ इतनी वह हूँ जो तुम मुझे सातवें आसमान पर चढ़ाने लगी!' 'नहीं महादेवी, आपके गुणों की चर्चा तो हर एक नगरवासी की जुबान पर है और भला, कल्याणी क्यों मुझे गलत बातें बताएगी? हाँ, एक बात यह भी तो है, यदि कल्याणी मुझे आपके बारे में नहीं बताती तो फिर मैं आपसे मिल भी तो नहीं पाती न? मैं आज कितनी खुश हूँ आप से मिलकर !' जिनमति भावुकता में बह चली। For Private And Personal Use Only 'जिनमति, ये क्या 'महादेवी' और 'आप-आप' लगा रखा है ? वैसे मैं कोई उम्र में भी तुमसे ज्यादा बड़ी तो नहीं और फिर मुझे आप कहलाना पसन्द भी नही।' प्रियंगुमति ने जिनमति की ओर अर्थसूचक नजर से देखा । जिनमति की आँखों में प्यार की मछलियाँ तैरने लगी । " पर आप भी तो मुझे 'जिनमति' कह रही हैं। मैं क्या आपसे बड़ी हूँ ?'
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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