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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनमति २. जिनमति 'देवी, उस हवेली के मालिक तो यशोवर्म सेठ हैं। अपने नगर के राजमान्य एवं प्रतिष्ठा सम्पन्न श्रेष्ठि हैं। उनकी धर्मपत्नी का नाम यशोदत्ता । रूपवती और गुणवती यशोदत्ता वास्तव में उस हवेली की जीवन्त लक्ष्मी है। उसका मृदु स्वभाव, उसकी प्रिय हृदयंगम वाणी, उसकी मेहमाननबाजी, सच देवी, आप उस नारी को देखोगी तो बड़ी प्रसन्नता होगी आपको।' प्रियंगुमति को विश्वस्त दासी कल्याणी, प्रियंगुमति की सूचनानुसार हवेली के बारे में जानकारी प्राप्त करके प्रियंगुमति को हवेली का परिचय दे रही है। __ 'महादेवी, वो यशोदत्ता पाँच संतानों की माता है। चार पुत्र एवं एक पुत्री। पुत्री तो सचमुच देवकन्या है, अपने नगर में तो ऐसी सौन्दर्यशीला कन्या नहीं देखी! अरे, अपने पूरे राज्य में भी होगी या नहीं, यह सवाल है।' 'उसका नाम?' प्रियंगुमति ने पूछा। 'जिनमति' कल्याणी ने जवाब दिया। 'कितना प्यारा नाम है! प्रियंगुमति को नाम पसंद आ गया | 'जिनमति कुमारिका है। सेठ और सेठानी को इसी एक बात की चिंता सता रही है। इसके योग्य दूल्हा भी तो मिलना चाहिए न? जिनमति को सेठ और सेठानी ने बड़ी गम्भीरता से सुन्दर संस्कार दिये है। अच्छी शिक्षा दी है। अनेक कलाएँ सिखायी है।' कल्याणी ने सारी बातें बता दी। 'क्या तेरा जिनमति से परिचय है?' प्रियंगुमति ने पूछा। कल्याणी वैसे थी तो दासी, पर उसके पास भी रूप, यौवन और लावण्य था। युवानों को आकर्षित करे वैसा सौन्दर्य था । बोलने का तरीका था। बुद्धि बड़ी कुशाग्र और समयोचित थी। प्रियंगुमति का उसने अच्छा विश्वास संपादन किया था। 'परिचय तो नहीं है, बड़े घर की कन्याओं के साथ ऐसे ही परिचय किसलिए? 'अब करने का है। 'जैसी आपकी आज्ञा'. कल्याणी की पैनी बुद्धि प्रियंगुमति को समझने के For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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