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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माँ का दिल 'कुछ बरस का वियोग सहन करने के लिए मन को मज़बूत बना लो। युवा पुत्र देश-विदेश में घूमे-फिरे... इसमें अपना भी गौरव बढ़ेगा ही। उसके मन की इच्छा भी पूरी होगी। उसे सुख मिलेगा। उसके सुख में अपना सुख मानो। समझो, वह सुखी तो हम भी सुखी हैं।' सेठ धनावह ने धनवती के मन को शांत बनाने का प्रयत्न किया। काफ़ी शांति से और प्रेम से रोज़ाना धनवती के साथ तत्वज्ञान की बातें करने लगे। धनवती के साथ ज्यादा समय बिताने लगे। मन में तो ऐसा निर्णय भी कर लिया कि अब वे ज्यादा से ज्यादा समय धनवती के साथ गुज़ारेंगे। अमर के जाने के बाद स्वयं पेढ़ी पर आना-जाना कम कर देंगे। मुनीमों को अधिकांश कार्यभार सौंपकर स्वयं निवृत्त से हो जाएंगे।' एक दिन ऐसा आ भी गया कि जिसकी धनावह सेठ प्रतीक्षा कर रहे थे। धनवती ने खूद ही कहा : 'ज्योतिषिजी के पास अच्छा मुहूर्त निकलवाया?' 'किस के लिए?' 'अमर की विदेशयात्रा के लिए ही तो?' 'तो क्या तुमने इज़ाज़त दे दी?' 'हाँ, आज अमर ही आया था मेरे पास... बे... चा... रा... बोल ही नहीं पा रहा था... | 'शायद मेरी माँ के दिल पर आघात होगा तो? इसलिए मैंने खुद ने ही उससे कहाः ___ 'बेटा तू मेरी इज़ाज़त लेने के लिए आया है न? तुझे विदेश-यात्रा करने के लिए जाना है न?' ___ उसने सिर झुकाकर हामी भरी। मैंने कहा : खुशी से जा, बेटे! जवान बेटा तो देश-विदेश घूमेगा ही... इसी में मैं खुश हूँ... बेटा... अमर...' उस समय उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक आये... और उसने मेरी गोद में सिर रख दिया।' 'अच्छा किया तुमने! तुम्हें अपने दिल में लेकर अमर विदेश-यात्रा पर जाय... यह मैं चाह रहा था। द्रव्य से भले वह दूर चला जाए... पर भाव से तो अपने पास ही रहेगा।' 'तो अब मुहूर्त?' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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