SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन की मुराद 'श्रेष्ठी धनावह का पुत्र अमर?' ___ 'हाँ, सुरसुंदरी और अमर दोनों एक ही पाठशाला में साथ-साथ पढ़े हुए हैं... एक-दूसरे को पहचानते हैं और मैंने तो राजसभा में परीक्षा के दौरान इसी दृष्टिकोण से उसे परखने का प्रयत्न किया था कि उसमें मेरी पुत्री के लिए योग्य वर बनने की योग्यता है या नहीं, और मेरी निगाहें उस पर जड़ी हैं... बस, सवाल यही है कि वह राजकुमार नहीं है।' ___'मैं अमर की माँ धनवती को बहुत निकट से जानती हूँ... कई बार वह मुझसे मिलने आई है। सुशील एवं संस्कार-युक्त सन्नारी है। उसने अमर को संस्कार श्रेष्ठ ही दिये होंगे। _ 'इधर पाठशाला के पंडित सुबुद्धि भी अमर की बुद्धि की..., उसके ज्ञान की प्रशंसा करते हुए थकते नहीं हैं | आज राजसभा में भी वह रत्न की भाँति चमक रहा था। सेठ धनावह के पास ढेर सारी संपत्ति है...। नगर में लोकप्रिय, गणमान्य और धर्मनिष्ठ श्रेष्ठी के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका कुल भी ऊँचा है। उनकी सातों पीढ़ियों की कुलीनता प्रसिद्ध है। राज्य के साथ उनके संबंध भी धनिष्ठ हैं... इसलिए, सभी ढंग से सोचते हुए... मुझे उसमें कोई कमी दिखायी नहीं देती... अलबत्ता, वह राजकुमार नहीं है... राजपरिवार का नहीं है...।' 'इससे क्या? यदि बेटी सुखी होती हो, तो...' ‘पर, रिश्तेदार राजा लोग हँसी उड़ायेंगे... क्या कोई राजकुमार नहीं मिला... जो एक सेठ के लड़के के साथ राजकुमारी की शादी की...। ऐसा-वैसा बोलेंगे...' 'बोलने दें उन्हें... बोलनेवाले तो बोलेंगे ही, हमें तो सुरसुंदरी का हित पहले देखना है।' रतिसुंदरी को अमरकुमार के साथ सुंदरी का विवाह हो, यह बात पसंद आ गयी। 'यदि तुम्हें यह बात पसंद हो तो मैं संबंध तय कर लूँ।' 'मुझे तो पसंद है... पर आपको...' 'नहीं, बेटी के बारे में माँ का निर्णय ज्यादा अहमियत रखता है, वही मान्य होना चाहिए।' _ 'मेरी तरफ से तो आपका निर्णय ही मेरा निर्णय है। मेरे से ज्यादा आप अच्छी तरह सोच सकते हैं... मुझमें इतनी बुद्धि है कहाँ?' 'यदि बुद्धि न होती तो अपनी गृहस्थी इतनी सुखी नहीं होती, देवी! राजा-रानी ने निर्णय कर लिया। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy