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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ काश! मैं राजकुमारी न होती!! यह तो मैंने सांसारिक संबंध का उदाहरण देकर समझाया। अब आत्मा को लक्ष्य करके समझाता हूँ। आत्मा नित्य भी है अनित्य भी है। हाँ, परस्पर विरोधी लगने वाले धर्म भी नित्यत्व और अनित्यत्व एक ही आत्मा में रहते हैं! द्रव्यदृष्टि से आत्मा नित्य है | पर्याय-दृष्टि से आत्मा अनित्य है। आत्मद्रव्य का कभी नाश नहीं होता | आत्मद्रव्य कभी उत्पन्न नहीं होता है | 'तो फिर जो जन्म और मृत्यु दिखायी देते हैं वे किस के?' सुरसुंदरी ने पूछा। 'आत्मा के पर्याय के! एक आत्मा यदि मनुष्य है, तो मनुष्यत्व उस आत्मा का एक पर्याय है। आदमी मरा... इसका मतलब, आत्मा का मनुष्य रूप जो पर्याय था, वह नष्ट हुआ। वह मरकर देवगति में पैदा हुआ, इसका अर्थ देवत्व-पर्याय की उत्पत्ति हुई, यों हो सकता है। देवत्व आत्मा का ही एक पर्याय है। पशुत्व और नारकत्व भी आत्मा के पर्याय ही हैं। पर्याय को अवस्था भी कह सकते हैं। बाल्यावस्था बीती और युवावस्था का जन्म हुआ। युवावस्था गुज़री और वृद्धावस्था का जन्म हुआ। नीरोग अवस्था नष्ट हुई... रोगी अवस्था पैदा हुई। धनवान अवस्था नष्ट हुई... गरीबी का जन्म हुआ। यो अवस्थाएँ बदलती रहती हैं... पर आत्मा तो स्थायी रहती है। यह है आत्मा की नित्यता। यानी, यों नहीं कहा जा सकता कि 'आत्मा नित्य ही है'... या 'आत्मा अनित्य ही है'। पर यों कहा जाएगा कि 'आत्मा नित्य भी है... आत्मा अनित्य भी है।' द्रव्य की अपेक्षया आत्मा नित्य है... पर्याय की अपेक्षया आत्मा अनित्य है। इसका नाम है अनेकांतवाद । यही है सापेक्षवाद । इसलिये, जीवन में हमेशा कहनेवाले की अपेक्षा, उसके पहलू को समझने की कोशिश करनी चाहिए। 'यह किस अपेक्षा से बात कर रहा है।' यह समझने वाला मनुष्य समाधान पा लेता है। अपेक्षा समझने वाला समता प्राप्त कर सकता है | अपेक्षा को समझने वाला मनुष्य ही सर्वज्ञ-शासन के तत्त्वों की यथार्थता पहचान सकता है। ___ आचार्यदेव ने सुरसुंदरी के सामने देखकर पूछा : 'क्यों अनेकांतवाद की यह बुनियादी बात तेरी समझ में आ गयी न? ___ 'जी हाँ, गुरूदेव! एकदम साफ-साफ समझ में आ गयी सारी बातें। आपका कहना मैं भली-भाँति समझ सकी हूँ | For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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