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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ शिवकुमार प्रयत्न किया। पर शिवकुमार तो नमस्कार महामंत्र के ध्यान में लीन था। नमस्कार के अचिंत्य प्रभाव से वैताल को सफलता नहीं मिल पा रही थी। शिवकुमार के मस्तिष्क के चारों ओर दिव्य आभामंडल हो गया । नमस्कार महामंत्र के अधिष्ठाता देवों ने शिवकुमार के इर्द-गिर्द रक्षा-कवच खड़ा कर दिया था। वैताल का गुस्सा उबल उठा। वह अघोरी की ओर लपका | उसे तो खून की प्यास लगी थी। उसने खड्ग का प्रहार अघोरी पर ही कर दिया | जैसे ही अघोरी पर खड्ग का प्रहार हुआ... अघोरी का पूरा शरीर सुवर्ण-पुरुष में बदल गया। उसका शरीर सोने का हो गया। यदि वही प्रहार शिवकुमार पर होता, तो शिवकुमार का शरीर सोने का हो जाता | अघोरी को सुवर्ण-पुरुष की सिद्धि करनी थी। इसलिए वह शिवकुमार को पकड़ लाया था। शिवकुमार तो सुवर्णपुरुष-अघोरी के शरीर को सोने का बना देखकर ही विस्मित हो उठा। उसकी समझ में आ गया कि यह सारा प्रभाव श्री नमस्कार महामंत्र का है। इस महामंत्र के प्रभाव से ही मैं बच गया और यह सुवर्णपुरुष मुझे मिल गया... पर मैं यदि अभी ही इस सुवर्णपुरुष को अपने घर पर ले जाऊँ तो मुझ पर चोरी का इल्जाम भी आ सकता है... चूँकि इन दिनों मैं निर्धन हूँ... कहीं न कहीं आफत खड़ी होगी। इसके बजाय तो कल मैं महाराजा दमितारि के पास जाकर सारी हक़ीकत बता दूँगा। फिर यदि महाराजा इज़ाज़त देंगे, तो इस सुवर्णपुरुष को घर ले जाऊँगा। अभी तो यहाँ पर गड्ढा खोदकर गाड़ दिया जाए। यों सोचकर शिवकुमार मृतदेह के हाथ से खड्ग लेकर उससे गड्ढा खोदने लगा। गड्ढे में सुवर्णपुरुष को गाड़कर वह नगर में आया । सुबह घर पर जाकर स्नान वगैरह से निपटकर राजमहल में गया। महाराजा दमितारि से मिलकर रात की समग्र घटना कह सुनायी। राजा आश्चर्य से देखने लगा शिवकुमार को उसे लगा कहीं शिवकुमार शराब के नशे में तो नहीं है? आखिर शिवकुमार को साथ में लेकर राजा खुद श्मशान में गया । शिवकुमार की बात का भरोसा हुआ, नज़रोनज़र सुवर्णपुरुष देखकर | उसने शिवकुमार से कहा : 'शिवकुमार, यह सुवर्ण-पुरुष मैं तुझे देता हूँ। श्री नमस्कार महामंत्र के अचिंत्य प्रभाव से यह सोना तुझे मिला है... परंतु अब तू For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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